मंगलवार, 15 मार्च 2016

बोलना तो पड़ेगा जनाब

              Image result for speakingसाभार: guiwonglong.wordpress.com
अपने आप को सुर्खियों में रखने के लिए समय-समय पर कुछ बेतुका बोलना जरूरी होता है। हमारे देश में कुछ करने वालों को कम सुर्खियां मिलती हैं लेकिन ज्यादा बोलने वालों को अक्सर वरीयता दी जाती है। आजकल देश की चिंता करने वालों की तादात बढ़ गई है। इसका फायदा कई बड़बोले लोग भी उठा लेते हैं। जितने शब्द भारत माता की जय में नहीं होते हैं उससे कहीं ज्यादा ऊर्जा वो इसका विरोध करने में व्यय कर देते हैं। भारत माता की जय बोलने या न बोलने से भला भारत के विकास में क्या सहयोग मिलेगा, यह बात समझना आसान नहीं है। कुल मिलाकर अपने आपको देशभक्त साबित करने की एक होड़ लग गई है। कोई भारत माता की जय बोलकर देशभक्त बनना चाहता है तो कोई न बोलकर अपने आप को असली देशभक्त बता रहा है। चिंता तो तब ज्यादा हो जाती है जब लोग दूसरों को भी देशभक्त बनाने का ठेका ले लेते हैं। और आजकल ठेका लेने और देने वाले लोग अक्सर फँस जाते हैं। हाल ही में यादव सिंह और छगन भुजबल भी फँस गए। खतरा उन पर भी है जो देशभक्त बनाने का ठेका ले रहे हैं।
     अल्पसंख्यकों की भलाई का ढिंढोरा पीटने वाले लोग भी जब देशभक्ति के झंखाड़ में फंस जाते है तो थोड़ा दुख जरूर होता है। ऐसा लगता है उनको अपने मतलब का मुद्दा मिल गया हो। विकास के मुद्दे पर तो किसी का एकाधिकार है इसलिए उससे छेड़छाड़ करना ठीक नहीं है। असल में ये दोनों ही लोग जो अपने आपको देशभक्त साबित कर रहे हैं, एक दूसरे के पूरक हैं। अगर इनमें से कोई एक न हो तो इन्हे अपनी देशभक्ती साबित करने में नानी याद आ जाए। नेता होने से अच्छा था कि ये दोनों गुट के लोग अपनी फुटबॉल टीम बना लेते और बॉल एक दूसरे के पाले में फेंकते रहते। देशभक्ति की पूरी एक पटकथा तैयार हो गई है जिसमें कलाकार अपने अभिनय को दमदार बनाने के लिए अक्सर हेरफेर कर लेते हैं। चाकू और खंजर की बात करने से बात असरदार हो जाती है इसलिए कलाकार नेतागण अपने संवादों में बिलावज़ह भी हथियारों का ज़िक्र कर लेते हैं। वैसे तो इनकी ज़ुबान भी हथियार से कम नहीं है फिर भी चाकू खंजर बोलने से ज़ुबान की धार दोगुनी हो जाती है।