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सभी लोग अपने-अपने
विषय के जानकार होते हैं। किसी विषय का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करना आसान नहीं है।
ज्ञानार्जन एक लम्बी साधना है। पहले भी लोग ज्ञान प्राप्ति के लिए वर्षों साधना
करते थे और गुरू की शरण में रहकर अपने विषय में महारथ हासिल करते थे। आज भी लोग
जीवन पर्यंत पढ़ने-पढ़ाने के क्षेत्र में रहकर अनेक विषयों को गहराई में जाकर
समझने की कोशिश करते हैं। जिनको ज्ञान होता है वे दूसरों को भी ज्ञान देते हैं।
कहा भी जाता है कि विद्या ऐसी चीज है जो बांटने से बढ़ती है। आजकल ज्ञान देने से
ज्यादा लोग ज्ञान पेलते हैं। सोशल मीडिया ज्ञान पेलने का सबसे अच्छा प्लेटफार्म बन
गया है। यहां मौजूद हर व्यक्ति राजनीति और प्रेम शास्त्र का जीता जागता
इनसाइक्लोपीडिया है। इन ज्ञानियों कुछ लोग मौलिक ज्ञान की रचना करते हैं, बाकी
बड़े-बड़े ज्ञानी फिर उसको चेपना शुरू करते हैं। कई लोग दूसरों के ज्ञान को भी
चेपकर झट से उसे अपना बना लेते हैं।
मेरी तो समझ में
नहीं आता कि कई सारे ज्ञानी हर पांच मिनट में कहां से नया ज्ञान चेप देते हैं। पता
नहीं वो कुल्ला मंजन कुछ करते भी हैं या बस फेसबुक पर महानता का परिचय ही देते
रहते हैं। जो बातें लोगों को अपनी डायरी में लिखनी चाहिए वो भी ज्ञान बनाकर फेसबुक
पर चेपने के बाद लाइक और कमेंट का इंतजार करने लग जाते हैं। कभी-कभी ज्ञान बघारा
जाए तो बात समझ में आती है लेकिन 24 घंटे ज्ञानी मोड में रहने से फिर लोग उसके
ज्ञान को अनदेखा करना शुरू कर देते हैं। कई लोग किसी शायर का शेर चेप लेते हैं और
इस तरह प्रस्तुत करते हैं जैसे ये उन्होंने ही लिखा हो। क्रेडिट इसलिए नहीं देते
कि किसी को पता होगा तो ठीक, नहीं तो हो सकता है कोई उन्हे ही महान शायर समझ ले।
कुछ लोग कभी-कभी मौका देखकर एक दो लाइन पोस्ट करते हैं और अगली बार जब वे फेसबुक
खोलकर देखते हैं तो तब तक कई लोग उसी ज्ञान को अपने नाम से चेप चुके होते हैं।
फेसबुक की दुनिया में कवि और शायरों की कमी नहीं है। कुछ शायर लोग अपनी छोटी बड़ी
कविताओं की भड़ास फेसबुक पर निकालते रहते हैं और दूसरों को भी चिपकाते रहते हैं।
कुछ मंचीय कवि अपनी कविसम्मेलन और मुशायरों की फोटो लगाकर बेचारे फेसबुकिया शायरों
को चिढ़ाते रहते हैं। अच्छा, यहां शायर लिखे तो लोग बमुश्किल लाइक करके पीछा छुड़ा
लेते हैं और अगर लिखने वाली शायरा निकली, तो फिर देखिए कमेंट। लाइन लग जाती है।
कितने लोग तो कमेंट में ही अपनी पूरी कविता झोर देते हैं। दूसरी तरफ बेचारे शायर
के शेर को लोग लाइक नहीं भी करते हैं, तो भी उठाकर चुपचाप अपनी वाल पर चिपका लेते
हैं।
ज्ञान की इस दुनिया
में सुंदरता का मुकाबला भी चलता रहता है। कई लोगों की सुंदरता जब साबित नहीं हो
पाती है तो वे किसी लड़के की वाल से फोटो लेकर पोस्ट करते हैं जिसमें उनकी फोटो का
इस्तेमाल होता है। अब सिलसिला शुरू होता है अपने आप को विश्वसुंदरी साबित करने का।
अपने आपको मासूम और दूसरों को अपराधी साबित करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए
जाते हैं। इस दुनिया में अधिकतर लोग भ्रम में हैं कि उनके फेसबुक पर ज्ञान पेलने
की वजह से ही लोग जिंदा हैं। कभी कभी वे पोस्ट में लिखते हैं कि फलानी व्यस्तता की
वजह से कुछ दिन फेसबुक पर नहीं आ सकेंगे। कष्ट के लिए खेद है। माफ कीजिएगा। अरे
भइया जाइए ना आप, हम आपके बिना भी रह लेंगे। यहां ज्ञान पेलने वालों की कोई कमी
थोड़ी ही है।
फेसबुक पर विभिन्न्
विषयों के विशेषज्ञ भी उपलब्ध हैं। यहां राजनीति के सभी ज्ञाता हैं लेकिन केवल एक
ऐंगल से। जो बुद्धिजीवी हैं वो आंख मूंदकर मोदी का विरोध करते हैं और जो भक्त हैं
आंख मूंदकर सपोर्ट करते हैं। दोनो ही विचारकों में कोई खास अंतर नहीं है। दुनिया
के लगभग सारे कॉम्पिटिशन अब फेसबुक के लाइक और कमेंट के हिसाब से ही निर्धारित
होते हैं। जिसके जितने फ्रेंड हैं वो उतना बुद्धिमान है। अगर आपने कुछ लिखा और
उसपर ज्यादा लाइक नहीं आए तो समझो आप बेकार हैं। इसी लाइक और कमेंट के चक्कर में
लोग फेसबुक पर लिंग परिवर्तन तक कर लेते हैं। बस अकाउंट लड़की के नाम और फोटो से
बना लेने के बाद लो लाइक लो कमेंट। पिछले दिनों एक मोहतरमा ने फेसबुक पर एक कविता
पोस्ट की जिसका कोई मतलब नहीं था। शायद वो भी ऐसा करके मजे ले रही होंगी। लेकिन
कमेंट बॉक्स तारीफों से पट चुका था। ये कमेंट बाज लोग जल्दी ही कविता की छीछालेदर
करने पर उतारू हैं। खैर लोगों यह कहना भी कहना गलत नहीं है कि फेसबुक बना ही
किसलिए है। तो खूब ज्ञान बघारते रहिए। हम झेलने के लिए तैयार हैं। अगर नहीं
झेलेंगे तो हमें भी पिछड़ों की श्रेणी में डाल दिया जाएगा।