बुधवार, 12 अगस्त 2015

हंगामा है क्यूँ बरपा


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जिस तरह से विभिन्न समाचार चैनल मनोरंजन के साधन बन गए हैं उसी तरह राज्यसभा चैनल भी दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर रहा है। रोज संसद में हंगामा होता है। विपक्ष का उत्तरदायित्व केवल हंगामा करना रह गया है। पिछले दिनों भूमि अधिग्रहण बिल पर हंगामा होता रहा और अब जी.एस.टी. विपक्ष के निशाने पर है। लोकतंत्र में विरोध होना भी आवश्यक है लेकिन उसका मतलब काम ना करना बिल्कुल नहीं है। दुष्यंत कुमार की कुछ पंक्तियां याद आती हैं सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़्सद नहीं, शर्त मेरी है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। हमारे यहाँ सांसदों की सूरत बदल जाती है लेकिन काम नहीं बदलता है। आज जो सत्ता में हैं कल अगर वो भी विपक्ष में होंगे तो वही काम करेंगे। यह एक रिवाज़ बन गया है।

संसद भवन के बाहर भी हंगामा करने की पर्याप्त जगह होती है, लेकिन ए.सी. में बैठकर और कैमरे की निगाह में हंगामा करने का मजा ही कुछ और है। जनता के बीच जाने से किसी भी इज्जतदार व्यक्ति की इज्जत का फलूदा बन सकता है। संसद में हंगामा करने से कुछ टी.वी. चैनलों पर चेहरा भी दिख जाता है। हो सकता है कि तस्वीर अगले दिन के अखबार में भी आ जाए। अगर संसद में जाकर हंगामा ही खड़ा करना होता है तब तो कोई भी यह काम बड़ी संजीदगी से कर सकता है। कुछ जनता की अपेक्षाओं का भी ध्यान रखा जाए तो बात बने। हर पाँच साल में सांसदों की सूरत बदलनी ही आवश्यक नहीं है बल्कि संसद के कामकाज का तरीका भी थोड़ा बदलना चाहिए।

सोमवार, 6 जुलाई 2015

लेट लपेट

late के लिए चित्र परिणामहम भारतीयों की सबसे बड़ी पहचान है 'काम देर से करना' या फिर' कहीं भी समय  पर  न पहुँचना ।' हम लोगों ने अनेक मायनों में पश्चिमी सभ्यता को स्वीकार किया है लेकिन आज तक अपनी लेट होने की संस्कृति को सहेज कर रखा है। इसका सबसे बड़ा श्रेय हमारे देश के सरकारी कर्मचारियों को जाता है । दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए लेकिन इन्होने आजतक अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया । हमारे यहां इमर्जेन्सी का तो कोई कांसेप्ट ही नहीं है । यहां पर सरकारी अस्पतालों में भी इमर्जेन्सी में इलाज कराने के लिए भी लंबा इंतेज़ार करना पड़ता है क्योंकि यहां पर इमर्जेन्सी भी थोड़ी देर से शुरू होती है । सरकारी दफ्तरों  में अक्सर  कर्मचारियों के भूत काम करते हुए देखे जा सकते हैं । ये लोग अटेंडेंस रजिस्टर पे तो उपस्थित रहते हैं लेकिन इनके दर्शन करने के लिए दिव्य दृष्टि की आवश्यकता  होती है । वर्तमान सरकार  सरकारी कर्मचारियों की इस आदत पर नियंत्रण करने के लिए बायोमैट्रिक सिस्टम वाली मशीने लगवा रही है । इसी वजह से अधिकतर लोग सरकार को गाली देते नज़र आ जाते हैं । जैसे उनका जन्मसिद्ध अधिकार छीन लिया गया हो ।  हमारे देश  टांस्पोर्ट शायद पूरे विश्व में अद्वितीय होगा । भारतीय रेल अपने आप को मुख्य अतिथि समझती है जो अगर समय पर पहुंच जाएगी तो उसकी इज्जत भी काम हो सकती है । समय पर पहुचने वाले व्यक्ति को यहाँ इस तरह घूरा जाता है जैसे वह आसमान से उतरा हुआ कोई एलियन हो । यहां समय पर पहुचने वाले व्यक्ति को शर्मिन्दा होना पड़ता है क्योंकि लोग उसपर इल्जाम लगाते हैं की इसके पास कोई काम तो है नहीं, बस मुह उठा के चल देता है ।   अभी हाल ही में सरकार ने डिजिटल इंडिया की  शुरुआत की जिससे कुछ उम्मीदें बन रही हैं  कि भविष्य में हमारी गति में बढ़ोत्तरी होगी लेकिन यहां तो इंटरनेट भी ट्रेन की स्पीड से चलता है । इसका कोई पता नहीं  सिग्नल मिलना कहाँ बंद हो जाए और हमारा इंटरनेट जवाब दे जाए । अभी हाल ही में एक खबर पढ़ी जिसमें लिखा था की रेलवे टिकट बुकिंग के लिए irctc कुछ नए सर्वर खरीदने जा रही है तो मुझे इतनी खुशी हुई जैसे कि  ये  सारे सर्वर मेरे घर  में ही लगाए जा रहे हों । वैसे मुझे पता है कि  यही काम कौन सा जल्दी होने जा रहा है । उम्मीदों पर दुनिया कायम है । कभी तो वह दिन आएगा जब हमारे देश में भी समय के पाबंदी समझी जाएगी । लेकिन इसके लिए सबसे पहले दूसरों को कोसना छोड़कर हमें स्वयं समय का अनुपालन करना सीखना होगा । 

मंगलवार, 23 जून 2015

हम ही नवोदय हों

नवोदय विद्यालय के लिए चित्र परिणामहम नव युग की नई  आरती नई भारती । हम सूर्योदय हम चंद्रोदय हम ही नवोदय हों । नवोदय विद्यालय केन्द्र सरकार द्वारा संचालित ऐसे स्कूल हैं जो गाँवों में रहने वाले प्रतिभाशाली बच्चों को एक नई  दिशा देते हैं । ऐसे सुदूर क्षेत्रों में जहां के बच्चे आधुनिक शिक्षा के विषय में जानकार नहीं होते हैं उन्हें भी नवोदय विद्यालय एक नई पहचान देता है । हमें अपने आप पर गर्व होता है की हम नवोदय विद्यालय के प्रोडक्ट हैं । नवोदय विद्यालयों के छात्र  विभिन्न क्षेत्रों में देश को आगे बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं । हर साल जब सी.बी. एस. ई के रिजल्ट आते हैं तो नवोदय विद्यालय के छात्र सबसे आगे होते हैं । नवोदय विद्यालयों से आई आई टी जैसे संस्थानों में भी बड़ी संख्या में एडमिशन होते हैं । इस बार तो आई आई टी के दो टॉपर राजू सरोज और बृजेश  सरोज भी नवोदय विद्यालय के ही  छात्र हैं । वर्तमान  में अगर दलितों के उत्थान का काम कोई संस्था सार्थक रूप से कर रही है तो वह नवोदय विद्यालय है  । यहां के छात्रों को आगे आरक्षण का मोहताज़ नहीं होना पड़ता है । अपनी प्रतिभा के दम  पर छात्र अपना भविष्य बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं और सफल होते हैं । नवोदय विद्यालय के छात्र  बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं । यहां पढ़ाई के साथ साथ  संगीत, खेल, आदि में भी भविष्य बनाने का मौका मिलता है । यहां आवासीय व्यवस्था होने के  करण  छात्र चौबीस घंटे शिक्षक के सम्पर्क  में रह सकता है । शिक्षकों में सिखाने की लगन नवोदय विद्यालय से ज्यादा मैंने कहीं नहीं देखी । नवोदय विद्यालय से पास आउट  होने के बाद अभी तक मैं अपने स्कूल नहीं जा सका  हूँ लेकन हमारे टीचर्स आज भी हमारे संपर्क में हैं और उमके रिश्ते भी अभिभावक की तरह हैं । हमें भी भीड़ में अपनी विशेषताओं का एहसास होता  और हम अपनी अलग पहचान बनाने में हमेशा  कामयाब रहे हैं । भ्रष्टाचार के चलते नवोदय विद्यालय के छात्रों को कुछ परेशानियों का सामना भी कारना पड़ता है । सरकार को इस और थोड़ा ध्यान देना चाहिए । नवोदय विद्यालय के छात्र देश को आगे बढ़ाने में निरंतर योगदान देते रहे हैं । यह संस्था आरक्षण जैसे सिस्टम का विकल्प तैयार करने में भी कारगर है क्योंकि यहां पर ऐसे छात्र तैयार होते हैं जिन्हे आगे आरक्षण की जरूरत ही नहीं होती है । हमें सदैव गर्व रहेगा कि  हम जवाहर नवोदय विद्यालय के छात्र रह चुके हैं ।  

रविवार, 21 जून 2015

योग वर्षा

yoga day के लिए चित्र परिणाम21  जून का दिन वास्तव में हर भारतीय के लिए गर्व का दिन है । आज भारत के साथ-साथ विश्व के 193  अन्य देश भी योग दिवस मना रहे हैं । किसी भी देश के विकास के लिए वहां के नागरिको का स्वस्थ्य होना बहुत आवश्यक होता है । शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने के लिए योग एक अच्छा माध्यम है । आज ह्त्या, बलात्कार और लूट जैसी घटनाएं आम हो गयी हैं । इन घटनाओं के पीछे विकृत मानसिकता जिम्मेदार होती है । इन घटनाओं को रोकना किसी भी क़ानून के वश  में नहीं है जब तक कि  लोगों मानसिकता को न सुधार जाए । योग  इस दिशा में एक अच्छा कदम है । जिन्हे योग से परहेज है वो अपना परहेज करते रहे क्योंकि शायद योग उनका  स्वास्थ्य  बिगड़ सकता है । अगर योग दिवस मनाने और योग को बढ़ावा देने को राजनीति का नाम दिया जा  रहा है तो यह कदापि अनुचित नहीं है , बल्कि यह एक अच्छी राजनीति है । लोकतंत्र में अगर विरोध  गूंजे तो बात अधूरी रह जाती है लेकिन विरोध का कोई सर पैर भी होना चाहिए । योग में कोई  कमी नहीं नज़र आई तो  सूर्य नमस्कार का विरोध करना शुरू कर दिया। सूर्य तो हमारा पालक पिता है और अगर हम  अपने पिता को नमस्कार करते हैं तो सूर्य को क्यों नहीं कर सकते हैं ।  किसी में इतना अहंकार आ जाये को वह हर किसी को अपना सेवक समझे और उपकारों के प्रति कृतज्ञ न होना चाहे तो अलग बात है । अहंकार का जीवन बहुत लंबा नहीं होता है । कुछ राजनेता ऐसे भी हैं जिन्हे योग दिवस के  कार्यक्रम में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा गया तो वे विदेश पलायन कर गए । जैसे की योग न हो गया महामारी हो गयी ।  शायद इसीलिये उन्हें अक्सर काम के समय इलाज कराने के लिए भी विदेश की शरण लनी पड़ती है । अगर वे अपने घर में भी योग करते  होते तो आत्ममंथन के लिए विदेश न भागना पड़ता । योग का अर्थ होता है जोड़ना लेकिन इसमें भी लोगों को तोड़ने की राजनीति ही नज़र आई । सावन के अंधे को सब हरा हरा ही दिखता है । योग की परिभाषाएं समझाने का कोई मतलब भी नहीं बनता क्योंकि जिन्हे जानना है वो तो जान  ही लेते हैं और जिन्हे नहीं जानना है उन्हें क्या समझाया जाए । मैंने आज तक नहीं सुना कि  किसी को पकड़कर जबरदस्ती योग कराया गया है । फिर इतनी परेशानी क्यों हो रही है । जिसे नहीं करना है वह न करे लेकिन कम से कम भारतीय सभ्यता का अपमान तो न करे ।सबसे  ज्यादा परेशान तो आज के तथाकथित कम्युनिस्ट और सेक्युलर लोग हो जाते हैं । आजकल सारे कम्युनिस्ट लूट खा रहे हैं और मुह से बड़ी बड़ी बाते करते रहते हैं । मुझे तो कोई भी कम्युनिस्ट अपनी सैलरी समाज सेवा में लगाता हुआ नज़र नहीं आता है । अपने को ब्रह्मज्ञानी कहलवाने में इन्हे बड़ा मजा आता है । भारतीय संस्कृति का नाम आते ही ये ऐसे बिदक जाते हैं जैसे किसी साँढ़ को लाल कपड़ा दिखा दिया गया हो । सेकुलरों का तो कहना ही क्या । जो अपने ही धर्म का सम्मान न कर सके वो दूसरों के धर्म का क्या करेगा । योग तो ऐसी चीज है जो किसी धर्म विशेष की निजी संपत्ति नहीं है ।योग  पूरी मानवता के लिए एक वरदान है । महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी ने भी योग के द्वारा ही आत्मज्ञान प्राप्त किया था । योग से दूर रहने वाले लोग या तो संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त हैं या फिर वे बहुत डरे हुए हैं । योग का सामान्य अर्थ गीता में अप्राप्त को प्राप्त करने का प्रयास बताया  गया है । कुछ भी हो, विरोध करने वाले लोग अपना का करते रहें । योग वर्षा का आरम्भ हो चुकी  है । यह वर्षा पूरी मानवता को शीतल और निर्मल करने के लिए है । योग की शरण में जाने वाले लोग बिना किसी भेदभाव के लाभान्वित होते हैं । इससे बड़ी धर्मनिरपेक्षता और क्या हो सकती है । कम  से कम  हम में अपनी भलाई के लिए विचार करने की शक्ति तो होनी चाहिए और अगर नहीं है तो योग के द्वारा मेधा शक्ति को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए ।