सियासत की बात करें तो एक तरफ मोदी सरकार के एक साल पूरे हो गए हैं और दूसरी तरफ केजरीवाल सरकार के सौ दिन पूरे हो गए हैं । अब बारी है अपनी अपनी उपलब्धियों के ढोल पीटने की । मोदी जी तो इस मामले में कसर छोड़ नहीं सकते हैं । रैलियों का एक सिलसिला शुरू हो गया है । यही है सियासत की गर्मी जिसमें आम आदमी तप रहा है । उसकी समझ में ही नहीं आ रहा है की आखिर वो डूबे तो कहाँ डूबे । पानी की घोर समस्या है । पीने को पानी मिलता नहीं है फिर डूबने के लिए तो ज्यादा पानी चाहिए । आजकल तो नदियों की भी ऐसी हालत है की उसमें उतरने का मन नहीं करता, डूबने की तो बात ही छोड़ दीजिये । ऐसे में बेचारा किसान अगर पेड़ से लटक कर आत्महत्या न करे तो आखिर करे क्या ? सियासी गर्मी में तपकर मरना भी तो कम कष्टदायी नहीं है । एक तरफ आम आदमी इसे झेल रहा है, दूसरीबी ओर आम आदमी पार्टी भी परेशान है । जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन उनके हाथ आज भी केंद्र शासित प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की डोर से बंधे हुए हैं । ऐसे में कुछ थाली के बैंगन जिन्हे चाटुकारिता के बल पर बड़े अधिकार मिल गए हैं , अपने को प्रसिद्द करने के हर हथकंडे अपना रहे हैं । असलियत तो सभी को पता है । ऐसे में एक आम आदमी ने डूबकर मरना स्वीकार नहीं किया और आग में कूद पड़ा । चलो देखते हैं की वो प्रह्लाद की तरह बच जाएगा या उसके साथ भारी जनादेश भी जलकर ख़ाक हो जाएगा । एक तरफ आँध्रप्रदेश में गर्मी से मरने वालों का आंकड़ा 1800 को पार कर चुका है और दूसरी ओर भुवनेश्वर में पानी की त्राहि-त्राहि मची हुई है । विकसित राष्ट्र का सपना दिखाने वाले लोग अपनी पार्टी और प्रसिद्धि के विकास में लगे हुए हैं । भुवनेश्वर में एक लड़की को पानी के लिए अपनी इज्जत के साथ समझौता करना पड़ा । उसे पानी के लिए पड़ोसी के घर जाना पड़ता था और पानी की कीमत अपने शारीरिक शोषण से चुकानी पड़ती थी । ऐसी घटनाएं हम सब के लिए शर्म की बात हैं । अब चुल्लू भर पानी में किसे डूबना चाहिए यह निर्णय वही कर लें जो देश के ठेकेदार हो गए हैं । हालांकि वो डूबने की सलाह किसी को भी दे सकते हैं क्योंकि ऐ सी में बैठकर ऐसी समस्याओं का एहसास करना बहुत मुश्किल होता है । हमें कोई ऐतराज़ नहीं है आपकी सुख सुविधाओं से, क्योंकि आपका जन्म मानवता के कष्ट दूर करने के लिए हुआ है और हमारा जन्म मानवता के नाम पर डूब मरने के लिए हुआ है । हमें तो बस मरने का बहाना चाहिए । सर्दियों में ठंडी से मर जाते हैं , बरसात में बाढ़ में बह जाते हैं और गर्मियों में तपकर मर जाते हैं । हमें बड़ा भरोसा है आप पर कि इतने के बाद भी आप देश को जल्दी ही विकसित कर देंगे । ये गर्मी का मौसम भी चला जाएगा लेकिन सियासी गर्मी रूप बदल - बदल कर तपती रहेगी । हमारे पास काम ही क्या है , हम हर मौसम में मरने के अलग-अलग बहाने ढूंढते रहेंगे । जिन्हे मौसम के अनुकूल बहाना न मिले उनके लिए सियासी गर्मी में जलकर मरने का विकल्प हमेशा खुला है । जिन्हे चुल्लू भर पानी में डूबना चाहिए उन्हें तो फुरसत ही नहीं हैं । चलो हम ही कहीं पानी की तलाश करते हैं ।
गुरुवार, 28 मई 2015
आओ डूब मरें
रविवार, 10 मई 2015
कूलर बनाम ऐ. सी.
सोमवार, 4 मई 2015
चाय पानी
जिस समस्या को मुद्दा बनाकर सरकारें बनती हैं वो केवल हेल्प लाइन नंबर चलाकर आराम करने लगते हैं ।
सबसे ज्यादा चाय पानी के शौक़ीन तो पुलिस वाले होते है । वो खुद तो दूसरों का सम्मान करना भूल जाते हैं लेकिन अपनी चाय पानी कभी नहीं भूलते हैं । अरे कोई घर पर आ कर चाय पानी कर जाए तो थोड़ा अच्छा भी लगता है लेकिन पुलिस वाले तो रास्ते में भी नहीं बख्शते हैं । जहां मुलाक़ात हो जाए बस चाय पानी का बहाना ढूंढ ही लेते हैं । इसी चाय के कारण बड़े बड़े अफसरों को डाइबिटीज हो जाती है । वो सारा मीठा छोड़ देते हैं लेकिन यह चाय पानी की आदत नहीं छोड़ पाते हैं और फिर दुहाई देते हैं की डाइबिटीज तो बढ़ती ही जा रही है । कुछ लोग कप में मुह लगाकर चाय पानी करते हैं तो कुछ लोग इसके लिए स्ट्रॉ (नलकी ) का प्रयोग करते हैं अर्थात सामने से रिश्वत न लेकर अपने विशेष तंत्र के माध्यम से चाय पानी लेते हैं । अब 'पीछे से चाय पानी लेते हैं 'यह तो कहना उचित नहीं होगा । कुछ भी हो यह चाय पानी का रिवाज जो आजादी के बाद से ही चल रहा है इसका समाप्त होना जरूरी हो गया है क्योंकि इसमें आम आदमी की उम्मीदें चाय पत्ती बनकर उबल रहीं हैं और हमारे सपने चीनी की तरह घुलकर गायब हो जाते हैं । लस्सी वाला ज़माना अच्छा था । लेकिन लस्सी बनाने के लिए मंथन जरूरी होता है जो हमें करना होगा और चाय पानी से समाज को मुक्त कराना होगा ।
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