गुरुवार, 28 मई 2015

आओ डूब मरें

drowning image के लिए चित्र परिणामआजकल देश में तगड़ी गर्मी पड़  रही है । हाल ही  में आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में  गर्मी की वजह से हजारों लोगों की मृत्यु हो गयी । एक तरफ मौसम की गर्मी और  दूसरी तरफ  सियासत की गर्मी लोगों को तपा रही है । राह में चलता हुआ एक मुसाफिर अगर पानी भरा हुआ देखता है तो उसका मन  उसमें कूद जाने  का होता है, भले ही उसे तैरना न आता हो । ऐसी धूप में जलकर मरने से अच्छा है ठन्डे पानी में डूब कर मर जाना ।आजकल तो डूब कर मारना भी कोई आसान काम नहीं है क्योंकि डूबने से पहले पानी में उपस्थित बैक्टीरिया और गन्दगी व्यक्ति को मार देती है । 
सियासत की बात करें तो एक तरफ मोदी सरकार के एक साल पूरे हो गए हैं और दूसरी तरफ केजरीवाल सरकार के सौ दिन पूरे हो गए हैं । अब बारी है अपनी अपनी उपलब्धियों के ढोल पीटने की । मोदी जी तो  इस मामले में कसर छोड़ नहीं सकते हैं । रैलियों का एक सिलसिला  शुरू हो गया है । यही है सियासत की गर्मी जिसमें आम आदमी  तप  रहा है । उसकी समझ में ही नहीं आ रहा है की आखिर वो डूबे तो कहाँ डूबे । पानी की घोर समस्या है । पीने को पानी मिलता नहीं है फिर डूबने के लिए तो ज्यादा पानी चाहिए । आजकल तो नदियों की भी ऐसी हालत है की उसमें उतरने का मन नहीं करता, डूबने की तो बात ही छोड़ दीजिये । ऐसे में बेचारा किसान अगर पेड़ से लटक कर आत्महत्या न करे तो आखिर करे क्या ? सियासी गर्मी में तपकर मरना भी तो कम कष्टदायी नहीं है । एक तरफ आम आदमी इसे झेल रहा है, दूसरीबी ओर आम आदमी पार्टी भी परेशान है । जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन उनके हाथ आज भी केंद्र शासित प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी  क्षेत्र की डोर से बंधे हुए हैं । ऐसे में कुछ थाली के  बैंगन  जिन्हे चाटुकारिता के बल पर बड़े अधिकार मिल गए हैं , अपने को प्रसिद्द करने के हर हथकंडे अपना रहे हैं । असलियत तो सभी को पता है । ऐसे में एक आम आदमी  ने डूबकर  मरना स्वीकार नहीं किया और आग में कूद पड़ा  । चलो देखते हैं की वो प्रह्लाद की तरह बच जाएगा  या उसके  साथ भारी जनादेश  भी जलकर ख़ाक हो जाएगा  ।  एक तरफ आँध्रप्रदेश में गर्मी से मरने वालों का आंकड़ा 1800 को पार कर चुका है और दूसरी ओर  भुवनेश्वर में पानी की त्राहि-त्राहि मची हुई है । विकसित राष्ट्र का सपना दिखाने वाले लोग अपनी पार्टी  और प्रसिद्धि के विकास में लगे हुए हैं । भुवनेश्वर में एक लड़की  को पानी के लिए अपनी इज्जत के  साथ समझौता करना पड़ा । उसे पानी के लिए पड़ोसी के घर जाना पड़ता था और पानी की कीमत अपने शारीरिक शोषण से चुकानी पड़ती थी । ऐसी घटनाएं हम  सब के लिए शर्म की बात हैं  । अब चुल्लू भर पानी में किसे डूबना चाहिए यह निर्णय  वही कर लें जो देश के ठेकेदार हो गए हैं । हालांकि वो डूबने की सलाह किसी को भी दे सकते हैं क्योंकि ऐ सी में बैठकर ऐसी समस्याओं का एहसास करना बहुत मुश्किल होता है । हमें कोई ऐतराज़ नहीं है आपकी  सुख सुविधाओं से, क्योंकि आपका जन्म मानवता के कष्ट दूर करने के लिए हुआ है और हमारा जन्म मानवता के नाम पर डूब मरने के लिए हुआ है । हमें तो बस मरने का बहाना चाहिए ।  सर्दियों में ठंडी से मर जाते हैं , बरसात में बाढ़ में बह जाते हैं और गर्मियों में तपकर मर जाते हैं ।  हमें बड़ा भरोसा है आप पर कि  इतने के बाद भी आप देश को जल्दी ही विकसित कर देंगे । ये गर्मी का मौसम भी चला जाएगा लेकिन सियासी गर्मी रूप बदल - बदल कर तपती रहेगी । हमारे पास काम ही क्या है , हम हर मौसम में मरने के अलग-अलग बहाने ढूंढते रहेंगे । जिन्हे मौसम के अनुकूल बहाना न मिले उनके लिए सियासी गर्मी में जलकर मरने का विकल्प हमेशा खुला है । जिन्हे चुल्लू भर पानी में डूबना चाहिए उन्हें तो फुरसत ही नहीं हैं । चलो हम ही कहीं पानी की तलाश करते हैं । 

रविवार, 10 मई 2015

कूलर बनाम ऐ. सी.

old cooler images के लिए चित्र परिणामगर्मियां आते ही हमें पंखा, कूलर सब याद आने  लगता है जैसे मुसीबत आते  ही नानी याद आने लगती हैं । बेचारा वही कूलर जो पूरे पूरे आठ महीने झक्ख मारता रहता है और धूल फांकता रहता है फिर नहा धोकर सेवा करने के लिए तैयार हो जाता है ।कूलर और पानी का बड़ा गहरा सम्बन्ध है । बिना पानी के कूलर भी हीटर हो जाता है ।  कूलर और पानी का वही सम्बन्ध है जो जो सरकारी लोगों का रिश्वत से है । उनकी गर्मी तब तक ही रहती  है जब तक उनकी जेब ठंडी रहती है । जेब में थोड़ी चाय पानी डालते ही सारी गर्मी शांत हो जाती है । इसी तरह कूलर में पानी डालते ही ठंडी हवा बरसाने लगता है । अब लोगों के यहां कूलर कम और ए.सी. ज्यादा दिखाई देते  हैं । जैसे ए.सी  दीवार पर चढ़ी  रहती है वैसे ही ए.सी. वाले लोगों  भाव  साल भर चढ़े रहते हैं । बेचारे कूलर वालों की ज़िंदगी में कूलर की ही तरह उतार  चढ़ाव आते रहते हैं । हम पंखे  वालों की बात ही क्यों करें क्योंकि उन्हें पूछने वाला कोई है ही नहीं ।  जैसे पंखा  लटका रहता है  वैसे ही पंखे वालों की किस्मत भी लटकी होती है । गाँव में तो लोगों ने पंखे लगाए लेकिन पंखे को चलता हुआ देखने के लिए उन्हें रातों की नींद  खराब करनी पड़ती है । बेचारा पंखा भी रुका रुका जाम हो जाता है  । लोग पंखे के नीचे  लेटकर जब हाथ का पंखा   डुलाते हैं तो  छत  पर  लटका हुआ पंखा उसे देखकर जलता रहता है । शहरों में तो अब लोगों को  पंखे की आदत ही छूट गयी है । झुग्गियों में भी कूलर अपना मुह घुसाकर झांकता रहता है । फिलहाल कूलर बड़ा रहमदिल होता है जिस तरह से कूलर लगाने वाले लोग होते हैं । कूलर अपना कमरा ठंडा कर देता है बाकी बाहर की दुनिया से उसे कोई मतलब नहीं होता है । बस सुबह शाम पीने को चार बाल्टी पानी मिल जाए और थोड़ी सी बिजली , बेचारा खुश रहता है । ए.सी. बहुत स्वार्थी होता  है । अपना कमरा तो ठंडा कर लेता है और बाहर इतनी गर्मी फेंकता है की बगल से गुजरने वाला इंसान आधा झुलस जाए । ए. सी. वालों का स्वभाव भी कुछ ऐसा ही होता है । अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता । इतने सितम के बाद भी लोग ए.सी. को सभ्य मानते हैं क्योंकि यह कूलर की तरह आवाज नहीं करता है । ए. सी की वजह से कभी किसी को जुर्माना नहीं भरना पड़ता है क्योंकि इसे चेक करने वाला कोई नहीं होता हैं लेकिन कूलर चेक  करने वाला आता है तो बिना जुर्माना ठोके नहीं जाता है भले ही पानी तुरंत बदला गया हो । इसी तरह कूलर वालों के पीछे  सब हाथ धो के पड़े रहते हैं ।  ए. सी. वालों को तंग करने की हिम्मत किसी में नहीं है । मच्छरों को भी कूलर ही पनाह देता है  ।  अब आप सोच सकते हैं की कूलर का दिल कितना बड़ा होता है । जिस मच्छर को कूलर रहने  ठिकाना  है वही मच्छर कूलर वाले का खून चूसने पर उतारू हो जाता है । ए. सी. वालों को मजा तभी आता है जब उन्हें धूप में निकलना पड़ता है । पूरा हिसाब किताब बराबर हो जाता है । उन्हें देखकर सूरज भी बोलता होगा ' अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे ।' कूलर की एक खासियत और है की यह अपनी इज्जत के साथ समझौता नहीं करता है और घास के  ही सही लेकिन कपडे पहन लेता है । ए. सी. की डिजाइनिंग इतनी अच्छी होती है की कपड़ों से उसकी इज्जत कम हो जाती है । कूलर हो या ए. सी. दोनों को एक बात तो समझ लेनी चाहिए की दोनों की कीमत तभी तक है जब तक गर्मी है । हालांकि ए.सी. तो मौसम के साथ अपना स्वभाव भी बदल लेता  है । बेचारा कूलर ही अपने सिद्धांतों पर अटल  रहता है । भले ही कूलर को उठाकर कबाड़ी को सौंप दिया जाए लेकिन वह अपनी परम्परा से समझौता करने को तैयार नहीं होता है । ए. सी. तो जब  देखता है की सर्दियां आ गयी हैं तो फट से अपना पाला बदल लेता है । कूलर और एसी. का मिलन तो असंभव ही  है । कूलर की खासियत है की वह हर हाल में नाचता रहता है और ए. सी. वायुमंडल  की वाष्प को समेटकर बूँद-बूँद आंसू बहाने को मजबूर है । अब पॉपुलर कल्चर का प्रभाव तो पड़ना  ही है । कूलर भी सज संवरकर मॉडर्न बनकर निकलने लगे हैं लेकिन कोई पुराने कूलर से पूछे कि  आज भी उसकी हालत क्या है ।  शायद असलियत वह न हो जो हम समझ रहे हैं । 

सोमवार, 4 मई 2015

चाय पानी

रिश्वतखोरी के लिए चित्र परिणामहमारे देश  में मेहमान नवाज़ी की तहज़ीब बहुत पुरानी  है जो आज भी बरकरार है । जब कोई मेहमान आता है तो हम उसे चाय पानी कराते हैं । पहले पानी पत्ता कराया जाता है लेकिन अब बिना चाय के सम्मान अधूरा रह जाता है । हद तो तब हो जाती है जब जून की गर्मी में कोई मेहमान धूप में तपता हुआ आता है और उसके सामने तपती हुई चाय रख दी जाती है । और वह बड़े शौक से चुश्कियां लेकर पीता  है । खैर यह चाय पानी तो चलती ही रहती है लेकिन एक चाय पानी ऐसी भी है जो बहुत बड़ी मुसीबत बन गयी है । इसके विरोध में बड़े बड़े आंदोलन हुए लेकिन यह थमने का नाम नहीं ले रही है । मैं रिश्वत की बात कर रहा हूँ । जिस रिश्वत को मुद्दा बनाकर दिल्ली में सरकार आम आदमी की बन गयी वहाँ आज भी चाय पानी का रिवाज़ ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है । अभी कुछ दिनों पहले मुझे बिजली का कनेक्शन कराना था । मुझे 4800  रुपये तो जमा करने ही पड़े साथ में 2000  की चाय पानी करानी पडी । यह बात सुनकर बहुत सारे लोग मुझे दोष देने लगे । मैंने उनसे कहा की एक दिन के लिए आप मेरे घर आ जाइए जब बिना बिजली के एक दिन कटेगा तब  पता चलेगा की चाय पानी के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहिए  या फिर चाय पानी करवा के अपना काम करवा लेना चाहिए  । हां एक काम हो सकता है की लोग अक्सर अपना काम बनने के बाद मुद्दा भूल जाते हैं । अब मेरे पास अवसर है इस चाय पानी के खिलाफ आवाज़ उठाने का । इतनी महंगी चाय और पानी तो फाइव स्टार होटल में भी न मिलती होगी जितनी महंगी हर आम आदमी समाज के लुटेरों को पिला रहा है । एक गरीब जब रास्ते में चलता है और उसे  जोर की प्यास लगी होती है तो वह सोचता है कि चलो घर चलके पानी पिएंगे । कुछ पैसे ही बच जाएंगे    लेकिन इसी गरीब को दूसरों की चाय पानी का प्रबंध करना आवश्यक हो जाता है वरना उसकी बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी हो पाएंगी । 
जिस समस्या को मुद्दा बनाकर सरकारें बनती हैं वो केवल हेल्प लाइन नंबर चलाकर आराम करने लगते हैं । 
सबसे ज्यादा चाय पानी के शौक़ीन तो पुलिस वाले होते है । वो खुद तो दूसरों का  सम्मान करना भूल जाते हैं लेकिन अपनी चाय पानी कभी नहीं भूलते हैं । अरे कोई घर पर  आ कर चाय पानी कर जाए तो थोड़ा अच्छा भी लगता है लेकिन पुलिस वाले तो रास्ते में भी नहीं बख्शते   हैं । जहां मुलाक़ात हो जाए बस चाय पानी का बहाना ढूंढ ही लेते हैं । इसी चाय के कारण बड़े बड़े अफसरों को डाइबिटीज हो जाती है । वो सारा मीठा छोड़ देते हैं लेकिन यह चाय पानी की आदत  नहीं छोड़ पाते हैं और फिर दुहाई देते हैं की डाइबिटीज तो बढ़ती  ही जा रही है । कुछ लोग कप में मुह लगाकर चाय पानी करते हैं तो कुछ लोग इसके लिए स्ट्रॉ  (नलकी ) का प्रयोग करते हैं अर्थात सामने से रिश्वत न लेकर अपने विशेष तंत्र के माध्यम से चाय  पानी लेते हैं । अब 'पीछे से चाय पानी लेते हैं 'यह तो कहना उचित नहीं होगा । कुछ भी हो यह चाय पानी का रिवाज जो आजादी के बाद से ही चल रहा है इसका समाप्त  होना जरूरी हो गया है क्योंकि इसमें आम आदमी की उम्मीदें चाय पत्ती  बनकर उबल रहीं हैं  और हमारे सपने चीनी की तरह घुलकर गायब हो जाते हैं । लस्सी वाला ज़माना अच्छा था । लेकिन लस्सी बनाने के लिए मंथन जरूरी होता है जो हमें करना होगा और चाय पानी से समाज को मुक्त कराना होगा ।