सोमवार, 4 मई 2015

चाय पानी

रिश्वतखोरी के लिए चित्र परिणामहमारे देश  में मेहमान नवाज़ी की तहज़ीब बहुत पुरानी  है जो आज भी बरकरार है । जब कोई मेहमान आता है तो हम उसे चाय पानी कराते हैं । पहले पानी पत्ता कराया जाता है लेकिन अब बिना चाय के सम्मान अधूरा रह जाता है । हद तो तब हो जाती है जब जून की गर्मी में कोई मेहमान धूप में तपता हुआ आता है और उसके सामने तपती हुई चाय रख दी जाती है । और वह बड़े शौक से चुश्कियां लेकर पीता  है । खैर यह चाय पानी तो चलती ही रहती है लेकिन एक चाय पानी ऐसी भी है जो बहुत बड़ी मुसीबत बन गयी है । इसके विरोध में बड़े बड़े आंदोलन हुए लेकिन यह थमने का नाम नहीं ले रही है । मैं रिश्वत की बात कर रहा हूँ । जिस रिश्वत को मुद्दा बनाकर दिल्ली में सरकार आम आदमी की बन गयी वहाँ आज भी चाय पानी का रिवाज़ ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है । अभी कुछ दिनों पहले मुझे बिजली का कनेक्शन कराना था । मुझे 4800  रुपये तो जमा करने ही पड़े साथ में 2000  की चाय पानी करानी पडी । यह बात सुनकर बहुत सारे लोग मुझे दोष देने लगे । मैंने उनसे कहा की एक दिन के लिए आप मेरे घर आ जाइए जब बिना बिजली के एक दिन कटेगा तब  पता चलेगा की चाय पानी के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहिए  या फिर चाय पानी करवा के अपना काम करवा लेना चाहिए  । हां एक काम हो सकता है की लोग अक्सर अपना काम बनने के बाद मुद्दा भूल जाते हैं । अब मेरे पास अवसर है इस चाय पानी के खिलाफ आवाज़ उठाने का । इतनी महंगी चाय और पानी तो फाइव स्टार होटल में भी न मिलती होगी जितनी महंगी हर आम आदमी समाज के लुटेरों को पिला रहा है । एक गरीब जब रास्ते में चलता है और उसे  जोर की प्यास लगी होती है तो वह सोचता है कि चलो घर चलके पानी पिएंगे । कुछ पैसे ही बच जाएंगे    लेकिन इसी गरीब को दूसरों की चाय पानी का प्रबंध करना आवश्यक हो जाता है वरना उसकी बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी हो पाएंगी । 
जिस समस्या को मुद्दा बनाकर सरकारें बनती हैं वो केवल हेल्प लाइन नंबर चलाकर आराम करने लगते हैं । 
सबसे ज्यादा चाय पानी के शौक़ीन तो पुलिस वाले होते है । वो खुद तो दूसरों का  सम्मान करना भूल जाते हैं लेकिन अपनी चाय पानी कभी नहीं भूलते हैं । अरे कोई घर पर  आ कर चाय पानी कर जाए तो थोड़ा अच्छा भी लगता है लेकिन पुलिस वाले तो रास्ते में भी नहीं बख्शते   हैं । जहां मुलाक़ात हो जाए बस चाय पानी का बहाना ढूंढ ही लेते हैं । इसी चाय के कारण बड़े बड़े अफसरों को डाइबिटीज हो जाती है । वो सारा मीठा छोड़ देते हैं लेकिन यह चाय पानी की आदत  नहीं छोड़ पाते हैं और फिर दुहाई देते हैं की डाइबिटीज तो बढ़ती  ही जा रही है । कुछ लोग कप में मुह लगाकर चाय पानी करते हैं तो कुछ लोग इसके लिए स्ट्रॉ  (नलकी ) का प्रयोग करते हैं अर्थात सामने से रिश्वत न लेकर अपने विशेष तंत्र के माध्यम से चाय  पानी लेते हैं । अब 'पीछे से चाय पानी लेते हैं 'यह तो कहना उचित नहीं होगा । कुछ भी हो यह चाय पानी का रिवाज जो आजादी के बाद से ही चल रहा है इसका समाप्त  होना जरूरी हो गया है क्योंकि इसमें आम आदमी की उम्मीदें चाय पत्ती  बनकर उबल रहीं हैं  और हमारे सपने चीनी की तरह घुलकर गायब हो जाते हैं । लस्सी वाला ज़माना अच्छा था । लेकिन लस्सी बनाने के लिए मंथन जरूरी होता है जो हमें करना होगा और चाय पानी से समाज को मुक्त कराना होगा । 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें