मंगलवार, 23 जून 2015

हम ही नवोदय हों

नवोदय विद्यालय के लिए चित्र परिणामहम नव युग की नई  आरती नई भारती । हम सूर्योदय हम चंद्रोदय हम ही नवोदय हों । नवोदय विद्यालय केन्द्र सरकार द्वारा संचालित ऐसे स्कूल हैं जो गाँवों में रहने वाले प्रतिभाशाली बच्चों को एक नई  दिशा देते हैं । ऐसे सुदूर क्षेत्रों में जहां के बच्चे आधुनिक शिक्षा के विषय में जानकार नहीं होते हैं उन्हें भी नवोदय विद्यालय एक नई पहचान देता है । हमें अपने आप पर गर्व होता है की हम नवोदय विद्यालय के प्रोडक्ट हैं । नवोदय विद्यालयों के छात्र  विभिन्न क्षेत्रों में देश को आगे बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं । हर साल जब सी.बी. एस. ई के रिजल्ट आते हैं तो नवोदय विद्यालय के छात्र सबसे आगे होते हैं । नवोदय विद्यालयों से आई आई टी जैसे संस्थानों में भी बड़ी संख्या में एडमिशन होते हैं । इस बार तो आई आई टी के दो टॉपर राजू सरोज और बृजेश  सरोज भी नवोदय विद्यालय के ही  छात्र हैं । वर्तमान  में अगर दलितों के उत्थान का काम कोई संस्था सार्थक रूप से कर रही है तो वह नवोदय विद्यालय है  । यहां के छात्रों को आगे आरक्षण का मोहताज़ नहीं होना पड़ता है । अपनी प्रतिभा के दम  पर छात्र अपना भविष्य बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं और सफल होते हैं । नवोदय विद्यालय के छात्र  बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं । यहां पढ़ाई के साथ साथ  संगीत, खेल, आदि में भी भविष्य बनाने का मौका मिलता है । यहां आवासीय व्यवस्था होने के  करण  छात्र चौबीस घंटे शिक्षक के सम्पर्क  में रह सकता है । शिक्षकों में सिखाने की लगन नवोदय विद्यालय से ज्यादा मैंने कहीं नहीं देखी । नवोदय विद्यालय से पास आउट  होने के बाद अभी तक मैं अपने स्कूल नहीं जा सका  हूँ लेकन हमारे टीचर्स आज भी हमारे संपर्क में हैं और उमके रिश्ते भी अभिभावक की तरह हैं । हमें भी भीड़ में अपनी विशेषताओं का एहसास होता  और हम अपनी अलग पहचान बनाने में हमेशा  कामयाब रहे हैं । भ्रष्टाचार के चलते नवोदय विद्यालय के छात्रों को कुछ परेशानियों का सामना भी कारना पड़ता है । सरकार को इस और थोड़ा ध्यान देना चाहिए । नवोदय विद्यालय के छात्र देश को आगे बढ़ाने में निरंतर योगदान देते रहे हैं । यह संस्था आरक्षण जैसे सिस्टम का विकल्प तैयार करने में भी कारगर है क्योंकि यहां पर ऐसे छात्र तैयार होते हैं जिन्हे आगे आरक्षण की जरूरत ही नहीं होती है । हमें सदैव गर्व रहेगा कि  हम जवाहर नवोदय विद्यालय के छात्र रह चुके हैं ।  

रविवार, 21 जून 2015

योग वर्षा

yoga day के लिए चित्र परिणाम21  जून का दिन वास्तव में हर भारतीय के लिए गर्व का दिन है । आज भारत के साथ-साथ विश्व के 193  अन्य देश भी योग दिवस मना रहे हैं । किसी भी देश के विकास के लिए वहां के नागरिको का स्वस्थ्य होना बहुत आवश्यक होता है । शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने के लिए योग एक अच्छा माध्यम है । आज ह्त्या, बलात्कार और लूट जैसी घटनाएं आम हो गयी हैं । इन घटनाओं के पीछे विकृत मानसिकता जिम्मेदार होती है । इन घटनाओं को रोकना किसी भी क़ानून के वश  में नहीं है जब तक कि  लोगों मानसिकता को न सुधार जाए । योग  इस दिशा में एक अच्छा कदम है । जिन्हे योग से परहेज है वो अपना परहेज करते रहे क्योंकि शायद योग उनका  स्वास्थ्य  बिगड़ सकता है । अगर योग दिवस मनाने और योग को बढ़ावा देने को राजनीति का नाम दिया जा  रहा है तो यह कदापि अनुचित नहीं है , बल्कि यह एक अच्छी राजनीति है । लोकतंत्र में अगर विरोध  गूंजे तो बात अधूरी रह जाती है लेकिन विरोध का कोई सर पैर भी होना चाहिए । योग में कोई  कमी नहीं नज़र आई तो  सूर्य नमस्कार का विरोध करना शुरू कर दिया। सूर्य तो हमारा पालक पिता है और अगर हम  अपने पिता को नमस्कार करते हैं तो सूर्य को क्यों नहीं कर सकते हैं ।  किसी में इतना अहंकार आ जाये को वह हर किसी को अपना सेवक समझे और उपकारों के प्रति कृतज्ञ न होना चाहे तो अलग बात है । अहंकार का जीवन बहुत लंबा नहीं होता है । कुछ राजनेता ऐसे भी हैं जिन्हे योग दिवस के  कार्यक्रम में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा गया तो वे विदेश पलायन कर गए । जैसे की योग न हो गया महामारी हो गयी ।  शायद इसीलिये उन्हें अक्सर काम के समय इलाज कराने के लिए भी विदेश की शरण लनी पड़ती है । अगर वे अपने घर में भी योग करते  होते तो आत्ममंथन के लिए विदेश न भागना पड़ता । योग का अर्थ होता है जोड़ना लेकिन इसमें भी लोगों को तोड़ने की राजनीति ही नज़र आई । सावन के अंधे को सब हरा हरा ही दिखता है । योग की परिभाषाएं समझाने का कोई मतलब भी नहीं बनता क्योंकि जिन्हे जानना है वो तो जान  ही लेते हैं और जिन्हे नहीं जानना है उन्हें क्या समझाया जाए । मैंने आज तक नहीं सुना कि  किसी को पकड़कर जबरदस्ती योग कराया गया है । फिर इतनी परेशानी क्यों हो रही है । जिसे नहीं करना है वह न करे लेकिन कम से कम भारतीय सभ्यता का अपमान तो न करे ।सबसे  ज्यादा परेशान तो आज के तथाकथित कम्युनिस्ट और सेक्युलर लोग हो जाते हैं । आजकल सारे कम्युनिस्ट लूट खा रहे हैं और मुह से बड़ी बड़ी बाते करते रहते हैं । मुझे तो कोई भी कम्युनिस्ट अपनी सैलरी समाज सेवा में लगाता हुआ नज़र नहीं आता है । अपने को ब्रह्मज्ञानी कहलवाने में इन्हे बड़ा मजा आता है । भारतीय संस्कृति का नाम आते ही ये ऐसे बिदक जाते हैं जैसे किसी साँढ़ को लाल कपड़ा दिखा दिया गया हो । सेकुलरों का तो कहना ही क्या । जो अपने ही धर्म का सम्मान न कर सके वो दूसरों के धर्म का क्या करेगा । योग तो ऐसी चीज है जो किसी धर्म विशेष की निजी संपत्ति नहीं है ।योग  पूरी मानवता के लिए एक वरदान है । महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी ने भी योग के द्वारा ही आत्मज्ञान प्राप्त किया था । योग से दूर रहने वाले लोग या तो संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त हैं या फिर वे बहुत डरे हुए हैं । योग का सामान्य अर्थ गीता में अप्राप्त को प्राप्त करने का प्रयास बताया  गया है । कुछ भी हो, विरोध करने वाले लोग अपना का करते रहें । योग वर्षा का आरम्भ हो चुकी  है । यह वर्षा पूरी मानवता को शीतल और निर्मल करने के लिए है । योग की शरण में जाने वाले लोग बिना किसी भेदभाव के लाभान्वित होते हैं । इससे बड़ी धर्मनिरपेक्षता और क्या हो सकती है । कम  से कम  हम में अपनी भलाई के लिए विचार करने की शक्ति तो होनी चाहिए और अगर नहीं है तो योग के द्वारा मेधा शक्ति को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए । 

शनिवार, 6 जून 2015

"बहुत कठिन है डगर पनघट की"

डगर पनघट के लिए चित्र परिणामआजादी के बाद से हमारे देश में  बहुत प्रगति हुई है । आजाद होने के बाद लगभग  दस सालों तक तो हम अनाज और कपडे के लिए तरसते रहे । आज हम काफी आगे निकल चुके हैं । हमें गर्व है की अब हम अनाज के लिए नहीं तरसते हैं बल्कि सड़क, बिजली और पानी के लिए तरसते हैं । कुछ विशेष वर्ग के लोग सरकारी कॉलेज में  एडमिशन के लिए तरसते हैं और सरकारी नौकरी के लिए तरसते हैं । कोई भी सफर तय करना आसान नहीं है क्योंकि हमारे सिर  पर जिम्मेदारी का घड़ा लाद  दिया गया है । हम डरते हैं कि  कहीं पानी छलक न जाए । ऊपर से कुछ लोग गुलेल लेकर बैठे रहते हैं जो मौक़ा मिलते ही किसी का भी घड़ा फोड़ सकते हैं । अब समझ में नहीं आता है की घड़ा बचाया जाए या इस ऊबड़-खाबड़  सड़क पर अपने पैरों को घायल होने से बचाया जाए ।
 एक साधारण व्यक्ति के लिए सफर करना बिलकुल आसान नहीं है । आजकल रिजर्वेशन के लिए बहुत मारामारी चल रही है । मैं स्पष्ट रूप से ट्रेन  के रिजर्वेशन की बात कर रहा हूँ  क्योंकि बाकी किसी रिजर्वेशन की बात करके मैं विवादों में नहीं घिरना चाहता हूँ । हालांकि उस वाले रिज़र्वेशन का भी सम्बन्ध ट्रेन से है । अगर ट्रेन की पटरियों पर धरना दिया जाए और कुछ दिनों के लिए ट्रेन का आवागमन बाधित कर दिया जाए तो रिज़र्वेशन मिलने की सम्भावनाये बढ़ जाती हैं । रिजर्वेशन और सीट दोनों एक  दूसरे  की पूरक है । अगर आपको रिज़र्वेशन मिल  गया तो सीट मिल ही जाएगी । अब बेचारे वो लोग क्या करें जिन्हे भगवान ने वेटिंग में पैदा कर दिया । वो अगर कभी किसी से कहते भी हैं कि  हमारी हालत बहुत खराब है  कृपया अपनी सीट पे थोड़ी जगह हमें भी दे दीजिये, तो उन्हें तुरंत जवाब मिल जाता है " आपके पूर्वजों ने खूब सीट के मजे लिए हैं ।" अब ये कहाँ की समझदारी है कि जिसके बाप दादा ने सीट पे सफर किया हो, उन्हें सीट ही न दी जाए । ये वेटिंग वाले लोग अपनी जान को हथेली पर लेकर गेट पर लटककर सफर करने को मजबूर हैं । अंदर घुसने के चांस बहुत कम होते हैं । बोगी के अंदर तभी घुसा जा सकता है जब कोई जान पहचान का पहले ही अंदर घुस चुका हो । अगर किसी का लिंक किसी मंत्री से हो तो स्पेशल कोटे से वह भी आराम से सीट पे सफर कर सकता है । मुसीबत तो हम जैसे सीधे सादे लोगों के लिए है जिनका न कोई लिंक है और न रिज़र्वेशन ही मिल रहा है । हमें तो तत्काल में भी सीट नहीं मिल रही है । बस भगवान का ही भरोसा है । अगर सौभाग्य से सीट मिल गयी तब तो ठीक है वरना किसी बस में सवार होना पडेगा । ऐसे समय  में ये गाना बहुत अच्छा लगता है" बहुत कठिन है डगर पनघट की।"

गुरुवार, 28 मई 2015

आओ डूब मरें

drowning image के लिए चित्र परिणामआजकल देश में तगड़ी गर्मी पड़  रही है । हाल ही  में आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में  गर्मी की वजह से हजारों लोगों की मृत्यु हो गयी । एक तरफ मौसम की गर्मी और  दूसरी तरफ  सियासत की गर्मी लोगों को तपा रही है । राह में चलता हुआ एक मुसाफिर अगर पानी भरा हुआ देखता है तो उसका मन  उसमें कूद जाने  का होता है, भले ही उसे तैरना न आता हो । ऐसी धूप में जलकर मरने से अच्छा है ठन्डे पानी में डूब कर मर जाना ।आजकल तो डूब कर मारना भी कोई आसान काम नहीं है क्योंकि डूबने से पहले पानी में उपस्थित बैक्टीरिया और गन्दगी व्यक्ति को मार देती है । 
सियासत की बात करें तो एक तरफ मोदी सरकार के एक साल पूरे हो गए हैं और दूसरी तरफ केजरीवाल सरकार के सौ दिन पूरे हो गए हैं । अब बारी है अपनी अपनी उपलब्धियों के ढोल पीटने की । मोदी जी तो  इस मामले में कसर छोड़ नहीं सकते हैं । रैलियों का एक सिलसिला  शुरू हो गया है । यही है सियासत की गर्मी जिसमें आम आदमी  तप  रहा है । उसकी समझ में ही नहीं आ रहा है की आखिर वो डूबे तो कहाँ डूबे । पानी की घोर समस्या है । पीने को पानी मिलता नहीं है फिर डूबने के लिए तो ज्यादा पानी चाहिए । आजकल तो नदियों की भी ऐसी हालत है की उसमें उतरने का मन नहीं करता, डूबने की तो बात ही छोड़ दीजिये । ऐसे में बेचारा किसान अगर पेड़ से लटक कर आत्महत्या न करे तो आखिर करे क्या ? सियासी गर्मी में तपकर मरना भी तो कम कष्टदायी नहीं है । एक तरफ आम आदमी इसे झेल रहा है, दूसरीबी ओर आम आदमी पार्टी भी परेशान है । जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन उनके हाथ आज भी केंद्र शासित प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी  क्षेत्र की डोर से बंधे हुए हैं । ऐसे में कुछ थाली के  बैंगन  जिन्हे चाटुकारिता के बल पर बड़े अधिकार मिल गए हैं , अपने को प्रसिद्द करने के हर हथकंडे अपना रहे हैं । असलियत तो सभी को पता है । ऐसे में एक आम आदमी  ने डूबकर  मरना स्वीकार नहीं किया और आग में कूद पड़ा  । चलो देखते हैं की वो प्रह्लाद की तरह बच जाएगा  या उसके  साथ भारी जनादेश  भी जलकर ख़ाक हो जाएगा  ।  एक तरफ आँध्रप्रदेश में गर्मी से मरने वालों का आंकड़ा 1800 को पार कर चुका है और दूसरी ओर  भुवनेश्वर में पानी की त्राहि-त्राहि मची हुई है । विकसित राष्ट्र का सपना दिखाने वाले लोग अपनी पार्टी  और प्रसिद्धि के विकास में लगे हुए हैं । भुवनेश्वर में एक लड़की  को पानी के लिए अपनी इज्जत के  साथ समझौता करना पड़ा । उसे पानी के लिए पड़ोसी के घर जाना पड़ता था और पानी की कीमत अपने शारीरिक शोषण से चुकानी पड़ती थी । ऐसी घटनाएं हम  सब के लिए शर्म की बात हैं  । अब चुल्लू भर पानी में किसे डूबना चाहिए यह निर्णय  वही कर लें जो देश के ठेकेदार हो गए हैं । हालांकि वो डूबने की सलाह किसी को भी दे सकते हैं क्योंकि ऐ सी में बैठकर ऐसी समस्याओं का एहसास करना बहुत मुश्किल होता है । हमें कोई ऐतराज़ नहीं है आपकी  सुख सुविधाओं से, क्योंकि आपका जन्म मानवता के कष्ट दूर करने के लिए हुआ है और हमारा जन्म मानवता के नाम पर डूब मरने के लिए हुआ है । हमें तो बस मरने का बहाना चाहिए ।  सर्दियों में ठंडी से मर जाते हैं , बरसात में बाढ़ में बह जाते हैं और गर्मियों में तपकर मर जाते हैं ।  हमें बड़ा भरोसा है आप पर कि  इतने के बाद भी आप देश को जल्दी ही विकसित कर देंगे । ये गर्मी का मौसम भी चला जाएगा लेकिन सियासी गर्मी रूप बदल - बदल कर तपती रहेगी । हमारे पास काम ही क्या है , हम हर मौसम में मरने के अलग-अलग बहाने ढूंढते रहेंगे । जिन्हे मौसम के अनुकूल बहाना न मिले उनके लिए सियासी गर्मी में जलकर मरने का विकल्प हमेशा खुला है । जिन्हे चुल्लू भर पानी में डूबना चाहिए उन्हें तो फुरसत ही नहीं हैं । चलो हम ही कहीं पानी की तलाश करते हैं । 

रविवार, 10 मई 2015

कूलर बनाम ऐ. सी.

old cooler images के लिए चित्र परिणामगर्मियां आते ही हमें पंखा, कूलर सब याद आने  लगता है जैसे मुसीबत आते  ही नानी याद आने लगती हैं । बेचारा वही कूलर जो पूरे पूरे आठ महीने झक्ख मारता रहता है और धूल फांकता रहता है फिर नहा धोकर सेवा करने के लिए तैयार हो जाता है ।कूलर और पानी का बड़ा गहरा सम्बन्ध है । बिना पानी के कूलर भी हीटर हो जाता है ।  कूलर और पानी का वही सम्बन्ध है जो जो सरकारी लोगों का रिश्वत से है । उनकी गर्मी तब तक ही रहती  है जब तक उनकी जेब ठंडी रहती है । जेब में थोड़ी चाय पानी डालते ही सारी गर्मी शांत हो जाती है । इसी तरह कूलर में पानी डालते ही ठंडी हवा बरसाने लगता है । अब लोगों के यहां कूलर कम और ए.सी. ज्यादा दिखाई देते  हैं । जैसे ए.सी  दीवार पर चढ़ी  रहती है वैसे ही ए.सी. वाले लोगों  भाव  साल भर चढ़े रहते हैं । बेचारे कूलर वालों की ज़िंदगी में कूलर की ही तरह उतार  चढ़ाव आते रहते हैं । हम पंखे  वालों की बात ही क्यों करें क्योंकि उन्हें पूछने वाला कोई है ही नहीं ।  जैसे पंखा  लटका रहता है  वैसे ही पंखे वालों की किस्मत भी लटकी होती है । गाँव में तो लोगों ने पंखे लगाए लेकिन पंखे को चलता हुआ देखने के लिए उन्हें रातों की नींद  खराब करनी पड़ती है । बेचारा पंखा भी रुका रुका जाम हो जाता है  । लोग पंखे के नीचे  लेटकर जब हाथ का पंखा   डुलाते हैं तो  छत  पर  लटका हुआ पंखा उसे देखकर जलता रहता है । शहरों में तो अब लोगों को  पंखे की आदत ही छूट गयी है । झुग्गियों में भी कूलर अपना मुह घुसाकर झांकता रहता है । फिलहाल कूलर बड़ा रहमदिल होता है जिस तरह से कूलर लगाने वाले लोग होते हैं । कूलर अपना कमरा ठंडा कर देता है बाकी बाहर की दुनिया से उसे कोई मतलब नहीं होता है । बस सुबह शाम पीने को चार बाल्टी पानी मिल जाए और थोड़ी सी बिजली , बेचारा खुश रहता है । ए.सी. बहुत स्वार्थी होता  है । अपना कमरा तो ठंडा कर लेता है और बाहर इतनी गर्मी फेंकता है की बगल से गुजरने वाला इंसान आधा झुलस जाए । ए. सी. वालों का स्वभाव भी कुछ ऐसा ही होता है । अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता । इतने सितम के बाद भी लोग ए.सी. को सभ्य मानते हैं क्योंकि यह कूलर की तरह आवाज नहीं करता है । ए. सी की वजह से कभी किसी को जुर्माना नहीं भरना पड़ता है क्योंकि इसे चेक करने वाला कोई नहीं होता हैं लेकिन कूलर चेक  करने वाला आता है तो बिना जुर्माना ठोके नहीं जाता है भले ही पानी तुरंत बदला गया हो । इसी तरह कूलर वालों के पीछे  सब हाथ धो के पड़े रहते हैं ।  ए. सी. वालों को तंग करने की हिम्मत किसी में नहीं है । मच्छरों को भी कूलर ही पनाह देता है  ।  अब आप सोच सकते हैं की कूलर का दिल कितना बड़ा होता है । जिस मच्छर को कूलर रहने  ठिकाना  है वही मच्छर कूलर वाले का खून चूसने पर उतारू हो जाता है । ए. सी. वालों को मजा तभी आता है जब उन्हें धूप में निकलना पड़ता है । पूरा हिसाब किताब बराबर हो जाता है । उन्हें देखकर सूरज भी बोलता होगा ' अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे ।' कूलर की एक खासियत और है की यह अपनी इज्जत के साथ समझौता नहीं करता है और घास के  ही सही लेकिन कपडे पहन लेता है । ए. सी. की डिजाइनिंग इतनी अच्छी होती है की कपड़ों से उसकी इज्जत कम हो जाती है । कूलर हो या ए. सी. दोनों को एक बात तो समझ लेनी चाहिए की दोनों की कीमत तभी तक है जब तक गर्मी है । हालांकि ए.सी. तो मौसम के साथ अपना स्वभाव भी बदल लेता  है । बेचारा कूलर ही अपने सिद्धांतों पर अटल  रहता है । भले ही कूलर को उठाकर कबाड़ी को सौंप दिया जाए लेकिन वह अपनी परम्परा से समझौता करने को तैयार नहीं होता है । ए. सी. तो जब  देखता है की सर्दियां आ गयी हैं तो फट से अपना पाला बदल लेता है । कूलर और एसी. का मिलन तो असंभव ही  है । कूलर की खासियत है की वह हर हाल में नाचता रहता है और ए. सी. वायुमंडल  की वाष्प को समेटकर बूँद-बूँद आंसू बहाने को मजबूर है । अब पॉपुलर कल्चर का प्रभाव तो पड़ना  ही है । कूलर भी सज संवरकर मॉडर्न बनकर निकलने लगे हैं लेकिन कोई पुराने कूलर से पूछे कि  आज भी उसकी हालत क्या है ।  शायद असलियत वह न हो जो हम समझ रहे हैं । 

सोमवार, 4 मई 2015

चाय पानी

रिश्वतखोरी के लिए चित्र परिणामहमारे देश  में मेहमान नवाज़ी की तहज़ीब बहुत पुरानी  है जो आज भी बरकरार है । जब कोई मेहमान आता है तो हम उसे चाय पानी कराते हैं । पहले पानी पत्ता कराया जाता है लेकिन अब बिना चाय के सम्मान अधूरा रह जाता है । हद तो तब हो जाती है जब जून की गर्मी में कोई मेहमान धूप में तपता हुआ आता है और उसके सामने तपती हुई चाय रख दी जाती है । और वह बड़े शौक से चुश्कियां लेकर पीता  है । खैर यह चाय पानी तो चलती ही रहती है लेकिन एक चाय पानी ऐसी भी है जो बहुत बड़ी मुसीबत बन गयी है । इसके विरोध में बड़े बड़े आंदोलन हुए लेकिन यह थमने का नाम नहीं ले रही है । मैं रिश्वत की बात कर रहा हूँ । जिस रिश्वत को मुद्दा बनाकर दिल्ली में सरकार आम आदमी की बन गयी वहाँ आज भी चाय पानी का रिवाज़ ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है । अभी कुछ दिनों पहले मुझे बिजली का कनेक्शन कराना था । मुझे 4800  रुपये तो जमा करने ही पड़े साथ में 2000  की चाय पानी करानी पडी । यह बात सुनकर बहुत सारे लोग मुझे दोष देने लगे । मैंने उनसे कहा की एक दिन के लिए आप मेरे घर आ जाइए जब बिना बिजली के एक दिन कटेगा तब  पता चलेगा की चाय पानी के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहिए  या फिर चाय पानी करवा के अपना काम करवा लेना चाहिए  । हां एक काम हो सकता है की लोग अक्सर अपना काम बनने के बाद मुद्दा भूल जाते हैं । अब मेरे पास अवसर है इस चाय पानी के खिलाफ आवाज़ उठाने का । इतनी महंगी चाय और पानी तो फाइव स्टार होटल में भी न मिलती होगी जितनी महंगी हर आम आदमी समाज के लुटेरों को पिला रहा है । एक गरीब जब रास्ते में चलता है और उसे  जोर की प्यास लगी होती है तो वह सोचता है कि चलो घर चलके पानी पिएंगे । कुछ पैसे ही बच जाएंगे    लेकिन इसी गरीब को दूसरों की चाय पानी का प्रबंध करना आवश्यक हो जाता है वरना उसकी बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी हो पाएंगी । 
जिस समस्या को मुद्दा बनाकर सरकारें बनती हैं वो केवल हेल्प लाइन नंबर चलाकर आराम करने लगते हैं । 
सबसे ज्यादा चाय पानी के शौक़ीन तो पुलिस वाले होते है । वो खुद तो दूसरों का  सम्मान करना भूल जाते हैं लेकिन अपनी चाय पानी कभी नहीं भूलते हैं । अरे कोई घर पर  आ कर चाय पानी कर जाए तो थोड़ा अच्छा भी लगता है लेकिन पुलिस वाले तो रास्ते में भी नहीं बख्शते   हैं । जहां मुलाक़ात हो जाए बस चाय पानी का बहाना ढूंढ ही लेते हैं । इसी चाय के कारण बड़े बड़े अफसरों को डाइबिटीज हो जाती है । वो सारा मीठा छोड़ देते हैं लेकिन यह चाय पानी की आदत  नहीं छोड़ पाते हैं और फिर दुहाई देते हैं की डाइबिटीज तो बढ़ती  ही जा रही है । कुछ लोग कप में मुह लगाकर चाय पानी करते हैं तो कुछ लोग इसके लिए स्ट्रॉ  (नलकी ) का प्रयोग करते हैं अर्थात सामने से रिश्वत न लेकर अपने विशेष तंत्र के माध्यम से चाय  पानी लेते हैं । अब 'पीछे से चाय पानी लेते हैं 'यह तो कहना उचित नहीं होगा । कुछ भी हो यह चाय पानी का रिवाज जो आजादी के बाद से ही चल रहा है इसका समाप्त  होना जरूरी हो गया है क्योंकि इसमें आम आदमी की उम्मीदें चाय पत्ती  बनकर उबल रहीं हैं  और हमारे सपने चीनी की तरह घुलकर गायब हो जाते हैं । लस्सी वाला ज़माना अच्छा था । लेकिन लस्सी बनाने के लिए मंथन जरूरी होता है जो हमें करना होगा और चाय पानी से समाज को मुक्त कराना होगा । 

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

नीचे से भूकम्प ऊपर से पानी

earthquake के लिए चित्र परिणामपिछले दो दिनों से लगातार नेपाल और भारत के अनेक क्षेत्रों में भूकम्प के झटके महसूस किये जा रहे हैं । हम तो केवल महसूस ही कर रहे हैं लेकिन नेपाल के बहुत सारे लोग जो इसे झेल रहे हैं भगवान उनकी रक्षा करें और इस ज़लज़ले में समा गए लोगों के परिजनों को सहन शक्ति दें । भूकम्प से घबराये लोग दिन रात घर के बाहर बिताने को मजबूर हैं और ऊपर से ये बारिश उन्हें बाहर भी सुकून से नहीं बैठने दे रही है । सच ही है की मुसीबतें जब आती हैं तो छप्पड़ फाड़ के आती हैं । ऐसी बारिश भला किसी को कैसे रास आ सकती है । मेरे एक परम मित्र जो हमारे ही साथ पढ़ते हैं अभी हाल में ही अपने घर नेपाल गए थे । मुझे तो उनकी चिंता भी बहुत सता  रही थी लेकिन सुनकर अच्छा लगा किन उन्हें किसी भी तरह का नुकसांन  नहीं पहुंचा है । हम अक्सर अपने परिजनों को सलामत जान के थोड़ा खुश तो हो जाते हैं लेकिन इस भूकम्प में मारे गए हज़ारों लोगों की आह दिल तक उतर  जाती है । हे इश्वर अब और उन लोगों की और परिक्षा न ले  । उनका घर उन्हें वापस दिला दे । हम तुम्हारे अस्तित्व को स्वीकार करते हैं । हम जान गए हैं कि ये दुनिया तुम्हारी मुट्ठी में है । ये घर हमने बनाया तो है लेकिन बिना तुम्हारी मर्जी के , हम इसमें रह नहीं सकते । हम आपके बालक हैं । हमें घमंड हो गया था अपने विज्ञान पर लेकिन अब मुझे पता चल गया है की हमारी सीमा कहाँ तक है । अभी तक हम भूकम्प की भविष्यवाणी करने में भी सक्षम नहीं है । 
हे इश्वर सब की रक्षा करो । 


सर्वे   भवन्तु   सुखिनः , सर्वे सन्तु   निरामयाः । 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत् ॥