सोमवार, 6 अप्रैल 2015

राम तेरी गंगा मैली

                                                                    राम तेरी गंगा मैली



भारतीय संस्कृति में नदियो को भी माँ का दर्जा दिया गया है | पुराणों में नदियों से संबन्धित बहुत सारी कहानियाँ भी हैं जिसमें नदियों को मानव रूप में देखा गया है | महाभारत जैसे ग्रंथ में तो गंगा से कथा की शुरुआत ही होती है | नदियों के किनारे ही अनेक सभ्यताओं का जन्म हुआ | आज परिस्थिति यह है की नदियां लुप्तप्राय हो रही हैं | जल संपदा से सम्पन्न रहने वाले नदियां आज सूखने के कगार पर हैं | भारत में मोक्षदायी मानी जाने वाली गंगा और यमुना नदी की भी स्थिति दयनीय हो गई है | दिल्ली में यमुना को पहचानना भी मुश्किल हो गया है | कहा जाता है कि यमुना के पानी का रंग हरा होता है लेकिन आज यह काले रंग का नज़र आता है | नदी और नाले में अंतर कर पाना भी मुश्किल हो गया है |

इस स्थिति के लिए हमारे उद्योग ज्यादा जिम्मेदार हैं | गंगा और यमुना के अलावा अन्य छोटी बड़ी नदियों का भी हाल ऐसा ही है | अगर गोमती नदी की बात करें तो लखनऊ शहर में नदी के दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं | बिना नदियों के पर्यावरण की रक्षा कर पाना संभव नहीं है | गंगा के किनारे बहुत सारे तीर्थ स्थान भी हैं जहां श्रद्धालु आते हैं और गंगा नदी में स्नान भी करते हैं | आज गंगा नहाने के काबिल भी नहीं रह गई | जो जल वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता था आज वह नदी में भी शुद्ध नहीं है | नदियों में मछलियों की जगह पॉलिथीन तैरती  नज़र आती है | शहर का सारा कूड़ा कचरा नदियो में फेंक कर छुट्टी पा ली जाती है लेकिन यह कचरा अप्रत्यक्ष रूप से किस प्रकार हमारे लिए हानिकारक होता है यह जानने की कोशिश नही करते हैं | नदियों को साफ रखने की जीम्मेदारी न केवल सरकार की है बल्कि हम सब की है | गंगा की सफाई को लेकर लंबे समय से राजनीति होती रही है लेकिन आज भी कोई सार्थक परिणाम निकल कर नहीं आ रहा है | नदियों के तल में कचरा जमा होने के कारण जलस्तर ऊपर आ जाता है और जल में ऑक्सिजन की कमी होने के कारण  जलीय जीवों का जीवित रहना कठिन हो जाता है | नदियों के प्रदूषण से पर्यावरण की पूरी श्रंखला टूट रही है | गंगोत्री से निकलने के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में गंगा पहले की तरह आज भी शुद्ध जल के साथ बहते है | हरिद्वा तक गंगा पावन नदी के रूप में दिखती है लेकिन मैदानी भाग में आते ही हमारी करतूतें गंगा को मैली करने लगती हैं | समाज भी मोक्ष की आकांक्षा लेकर गंगा तक जाता है , गंगा माँ की बुरी हालत देख कर मुंह बना लेता है लेकिन एकजुट होकर कभी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाते हैं | कई लोगों ने गंगा की सफाई के लिए अनशन का भी सहारा लिया लेकिन परिणाम कुछ नही निकला | कुछ लोगों की तो जान भी चली गई | गंगा की सफाई को लेकर सरकार भी गोलमोल जवाब देती रहती है | अगर स्थिति ऐसी ही रही तो जल्दी ही भारत से नदियां लुप्त हो जाएंगी और निदियों के साथ में सभ्यता भी क्षीण होने लगेगी |

नदियां हमें जीवन देती हैं तो हमारा भी कर्तव्य है उनकी सुरक्षा करना | पहला काम हमें अपने स्तर से शुरू करना चाहिए | किसी भी वेस्ट को नदी में नहीं फेंकना चाहिए | दूसरों को भी नदियों की सफाई के प्रति जागरूक करना चाहिए | हमारे सार्थक प्रयास से ही हम नदियों और जल संपदा के रक्षण में कामयाब हो सकते हैं |

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

बेमौसम बारिश

                            बेमौसम बारिश

 बारिश का नाम सुनते ही हमें रिमझिम-रिमझिम बरसती बूंदों की याद आ जाती है | बागों की हरियाली याद आ जाती है | वर्षा ऋतु में बरसात सबको खुश कर देती है लेकिन यही बारिश जब बिना मौसम के होने लगे तो बहुत सारी दिक्कतें पैदा हो जाती हैं | आजकल यह आम बात हो गयी है | जब आवश्यकता होती है तब बारिश का नामोनिशान नहीं दिखाई देता, और जब आवश्यकता नहीं होती है तो झमाझम बारिश होती है | यह ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव का नतीजा है |
कल भी रात में दिल्ली समेत आसपास के इलाकों में झमाझम बारिश हुई | इस बारिश ने अप्रैल में ठंडी को फिर वापस बुला लिया | घर से निकलते ही सड़क पर भरे पानी से मुलाक़ात हो गयी | बारिश होते ही सड़क पर ट्रैफिक जाम हो जाता है | ऐसी बारिश किसी भी मायने में हमें खुश नहीं कर सकती | जहां देखो वहीं पानी भरा है और पानी में तैरती पन्नियाँ और भी चार चाँद लगा देती हैं | सड़क पर पैदल चलना मुश्किल हो जाता है | सोचना पड़ता है की काश हमारे पास मोटरसाइकल की जगह पर एक नाव होती तो आज आसानी से आना जाना हो पाता |
अगर गाँवों की बात करें तो अब रबी की फसल पककर तैयार हो गयी है | अब फसल को धूप की आवश्यकता है न कि बारिश की | इस बारिश ने किसानों की परेशानी भी बढ़ा दी है | जब बारिश की आवश्यकता होती है तब तो सूखा पड़ जाता है और जब नहीं होती है तब बाढ़ आ जाती है | बारिश से सब्जियों का भी नुकसान हुआ है | अब सब्जियों के दाम भी आसमान चढ़ जायेंगे और परेशान होगा ,आम आदमी | ऐसी बारिश संकेत करती है की बरसात के मौसम में हमें पानी की बूँद के लिए तरसना पडेगा | ‘ बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय ‘ , जब हमने अपने पर्यावरण को इतना नुकसान पहुचाया है तो यह सब तो भुगतना ही पडेगा | हिमालयी क्षेत्रों में भी आए दिन बाढ़ का आलम नज़र आ जाता है | कश्मीर में साल के भीतर ही दो बार भयंकर बाढ़ का सामना लोगों को करना पडा | पहाडी इलाकों में भू स्खलन की समस्या भी बढ़ रही है | जो पानी हमारे लिए जीवन देने वाला है वही प्राणघाती भी होता जा रहा है | उत्तर प्रदेश के एक किसान ने बताया की उसकी गेंहू की फसल का उत्पादन बारिश के चलते आधा हो गया है और फसल की लागत भी निकलनी मुश्किल हो गयी है |

हमारी जिम्मेदारी है की हम पर्यावरण का ध्यान रखें | प्रदूषण को नियंत्रित करें और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें | विज्ञान हमें पर्यावरण की इन समस्याओं से बचाने में सक्षम नहीं है | प्रकृति से छेड़छाड़ हमें विनाश की और ले जा सकती है और जो जल हमारी रक्षा करता है वही महाप्रलय बन कर हमें समाप्त भी कर सकता है |

पानी का गोरखधंधा

                पानी का गोरखधंधा


कुछ वर्षों पहले शायद ही किसी ने सोचा हो की एक दिन पानी भी खरीदने और बेचने की चीज़ हो जाएगी | आज यह हमारे लिए आम बात है | हम पानी खरीदने के आदी हो गए हैं | यात्रा के दौरान तो हम खरीदकर पानी पीना ही उचित मानने लगे हैं | पानी खरीदकर पीना हमारी मजबूरी भी है और स्टेटस सिम्बल भी बनता जा रहा है | अब तो लोग पानी की बोतल से भी दूसरों के स्टेटस का अंदाजा लगाते हैं  | हमारी इसी आदत का फायदा उठाकर पानी का गोरख धंधा भी चलाया जा रहा है |
पहले लोग दूसरों को पानी पिलाना पुण्य का काम मानते थे | इंसान तो इंसान लोग जानवरों और पक्षियों के भी पीने के पानी का इंतजाम किया करते थे लेकिन आज पानी के नाम पर लोग दूसरों की जेब काटने पर उतारू हैं | पानी भी ऐसा होता है जो पीने योग्य नहीं होता है | दिल्ली के पहाडगंज इलाके में नकली पानी की बोतलों के बड़े – बड़े कारोबार चल रहे हैं | यात्रिओं के द्वारा इस्तेमाल की गयी पानी की बोतलों को इकठ्ठा करके उनको रीफिल कर दिया जाता है और वही बोतल फिर से लोगों के बीच आ जाती है |  यह धंधा सौ प्रतिशत मुनाफे का है क्योंकि बोतल में भरा गया पानी भी ऐसा होता है जो पीने योग्य बिलकुल नहीं होता है | रेल के सफ़र में लोग पानी ज्यादा खरीदते हैं | सरकार की तरफ से उचित प्रबंध न होने के कारण लोगों को मजबूरी में ऐसे पानी का सहारा लेना पड़ता है | कई बार तो प्लेटफ़ॉर्म पर ट्रेन की धुलाई वाली पाइपलाइन से ही बोतलों में पानी भर के  बेच दिया जाता है | आप खुद ही समझ सकते हैं की ऐसा पानी हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना बुरा होगा | जगह-जगह पर हमें प्लास्टिक के पाउच में भी पानी मिल जाता है | गर्मी और प्यास से परेशान लोग इस पानी का भी प्रयोग करते हैं | यह पानी अपेक्षाकृत सस्ता भी होता है | लेकिन इसकी गुणवत्ता तो और भी खराब होती है | पानी के रूप में लोगों को ज़हर पिला दिया जाता है | ‘ मैं खुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों ,ज़हर भी होगा अगर तो दवा हो जाएगा ‘ शायद इन्ही पंक्तियों को याद करके लोग ऐसा पानी पी जाते हैं |’ हमारी भी ज़िम्मेदारी बनती है कि ऐसा पानी न पिए और दूसरों को भी जागरूक बनाएं |

कुछ कदम उठाकर हम इस गोरखधंधे को रोकने में अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं | रेलवे स्टेशन या बस स्टॉप पर प्रमाणीकृत पानी का ही प्रयोग करें | बोतल से पानी पीने के बाद बोतल को डिस्पोज अवश्य कर दें | कोशिश करनी चाहिए कि पीने का पानी अपने साथ घर से लेकर निकलें | अगर गंदा पानी बेचते हुए किसी को देखें तो प्रशासन से इसकी शिकायत अवश्य करें | हम अपनी जिम्मेदारियों को निभाकर पानी के गोरखधंधे पर लगाम लगा सकते हैं |

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

भूमिगत जल

                                                                                          भूमिगत जल

धरती हमारे लिए सबसे बड़ी सन्दूक है जिसमें तरह तरह के खजाने भरे पड़े हैं | धातु और पेट्रोलियम  के साथ साथ पानी का भंडार भी धरती अपने अंदर सँजोकर रखती है | जरूर ईश्वर ने हमारे ही लिए इतनी व्यवस्था की होगी लेकिन हमारी इच्छाएँ असीमित हैं | हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू कर देते हैं | हम भूल जाते हैं कि हर चीज की एक सीमा होती है उसके बाद वह खत्म हो जाती है | अगर पानी की बात करें तो पानी भी असीमित नहीं है |
यूं तो धरती का लगभग सत्तर प्रतिशत भाग पानी से ढका है लेकिन पीने का पानी सीमित है | सागरों का पानी पीने योग्य नहीं होता है | भूमिगत जल को ही पीने के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त माना गया है | शहरों मेन तो भूमिगत जल निकालने पर प्रतिबंध है इसके बावजूद लो बाज़ नहीं आ रहे हैं | लोगों ने चोरी से घर के अंदर बोर पंप लगवा रखे हैं | आजकल शहरों मे सबसे ज्यादा मौज प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर की है | भूमिगत जल का शोषण करने मेन भी ये पीछे नहीं रहते हैं | पुराने मकानों को तोड़कर नए फ्लैट्स खूब बन रहे हैं | काम शुरू होने से पहले ही बिल्डर चोरी से बोरिंग करवा देता है और सालों तक उससे पानी निकालता रहता है जो पूरी तरह से अवैध है | प्रशासन को इस बात की जानकारी होती है लेकिन इस  दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है | इसी तरह उद्योग भी पीछे नहीं रहते हैं | भूमिगत जल को निकालकर उसे दूषित करके नदियों में छोडना इन्हे अच्छी तरह आता है लेकिन पानी को साफ करने के नाम से दूर भागते हैं | ऐसा लगता है हम लोग हर तरफ अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने में लगे हैं | इस मामले में तो गाँव भी कहीं पीछे नहीं हैं | धरती का पानी निकालकर खूब बर्बाद किया जा रहा है | खेतों की सिचाई का ढंग सही न होने की वजह से पानी बर्बाद होता है | नौबत यह आ गई है कि छोटी बोरिंग से अब पानी भी नहीं निकलता है | अब समरसिबल लगाना पड़ता है | भूमिगत जल का स्तर दिनों दिन गिर रहा है | कारण है कि तालाब कम हो रहे हैं | वर्षा का जल संरक्षित नहीं किया जा रहा है | नदियों में भी पानी की मात्रा बहुत कम होती है | उत्तर प्रदेश में सई नाम की एक नदी है जिसका जिक्र रामचरित मानस में भी किया गया है, यह एक बरहमासी नदी हुआ करती थी लेकिन आजकल मई में ही यह सूखकर बीहड़ का रूप ले लेती है | ऐसी और भी अनेक नदियां हैं जो मौसमी हो गई हैं | नदियों के सूखने से आसपास के के क्षेत्र से हरियाली भी गायब हो जाती है | किसानों की अपनी समस्याएँ अलग हैं | अब बरसात के जल से तो खेती संभव नहीं है क्योंकि समय पर बरसात ही नहीं होती है | ऐसे में भूमिगत जल का ही शोषण करना पड़ता है | पिछले कुछ वर्षो में सरकार ने मानरेगा के माध्यम से गांवों में तालाब खुदवाए हैं लेकिन यह काम भी गंभीरता से नहीं किया गया है | किसी भी तालाब तक पानी पाहुचने का रास्ता ही नहीं बनाया गया है | कुल मिलाकर स्थिति जस की तास बनी हुई है | वनों की कटाई से भी भूमिगत जलस्तर में गिरावट आ रही है | यह छोटी मोटी समस्या नहीं है | अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही तो वो दिन दूर नहीं है कि गाँव में भी पानी खरीदकर पीना पड़ेगा |



भूमिगत जल का स्तर बढ़ाने का तरीका यही है कि वनों की कटाई पर रोक लगाई जाए ,वृक्षारोपण किया जाये और वर्षा के जल का संरक्षण किया जाये |  यह काम किसी एक के प्रयास से नहीं संभव है अपितु सबको मिलकर प्रयास करना होगा | हमें इस समस्या की ओर आँख खोलकर देखना होगा | अपने कर्तव्य को समझकर जल का संरक्षण करना बहुत आवश्यक है |

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

शहरों में पानी की हाय तौबा

हवा के बाद पानी मनुष्य की सबसे बड़े आवश्यकता है | वर्तमान की बात करें तो लोगों को पानी जुटाने के लिए नाको चने चबाने पड़ रहे हैं | ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो फिर भी ठीक ठाक है लेकिन शहरों में पीने का पानी मिलना बहुत मुश्किल हो गया है | पानी के लिए भी अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है | लोग बिसलेरी की बोतल से काम चलाते हैं या फिर घर में RO लगाना पड़ता है | टी वी पर वाटर प्योरीफायर के तरह तरह के विज्ञापन आते हैं | किसी की कमाई कम हो या ज्यादा लेकिन अपनी महीने के खर्च से कटौती करके वह RO खरीदने और फिर बिजली का बिल चुकाने को मजबूर है | अब अगर हम उन लोगों की बात करें जो पानी खरीदने में सक्षम नहीं हैं तो उनके हिस्से में तरह तरह की बीमारियाँ आती हैं | सरकार की स्थिति यह है की उसने अन्नपूर्णा योजना या फूड डिस्ट्रिब्यूशन तो शुरू कर दिया लेकिन पानी की ओर अभी भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है | सप्लाई से मिलने वाले पानी पर आए दिन सवाल उठते रहते हैं लेकिन इसका जवाब कोई देने को तैयार नहीं होता है | आए दिन सप्लाई का पानी बदबूदार आता है शिकायत करने पर सीवर टूटने का बहाना बता दिया जाता है | समझ में नहीं आता की ये पाइप लाइंस लोहे की बिछाई गई हैं या कागज की जो आए दिन फट जाती है | अब गर्मियाँ शुरू हो रही है | अब पानी के लिए त्राहि त्राहि मचने वाली है | समय पर पानी नहीं मिलेगा , और अगर मिलेगा भी तो उसकी क्वालिटी पीने लायक तो नहीं होगी | दिल्ली तो ऐसा शहर है जहां हैंड पंप भी नहीं लगाया जा सकता है | जिनके घरों में पानी का कनेक्शन नहीं है उन्हे तो केवल पानी के टैंकर का ही सहारा होता है | पानी का टैंकर आयेगा या नहीं इसका कोई सहारा नहीं होता है | गर्मियों में भी नहाने की नौबत नहीं आती है क्योंकि पानी ही नहीं उपलब्ध होता है |अब अगर यह परिस्थिति अरब देशों की हो तो बात समझ में आती है लेकिन भारत जैसा देश जहां कहा जाता है की प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है  यहाँ भी लोग ऐसी परेशानी से जूझ रहे हैं | आजकल जब हम किसी धार्मिक या ऐतिहासिक टी वी सीरियल में देखते हैं की कोई राजा अपने घोड़े से जा रहा है और रास्ते में उसे प्यास लगी | वह एक सरोवर के पास जाता है और सरोवर का पानी पीकर अपनी प्यास बुझा लेता है तो हमें रोना आता है | आजकल तो यह स्थिति हो गई है की यमुना के पुल से गुजरते समय नाक में रुमाल लगानी पड़ती है | ऐसा पानी पीकर कोई भी आत्महत्या कर सकता है |  अब तो लगता है चुल्लू भर पानी में डूब मरो की कहावत चुल्लू भर पानी पी मरो में परिवर्तित हो जाएगी | ज़मीन के अंदर पानी है नहीं और नदियों का पानी इतना दूषित हो गया है तो आखिर पीने का पानी आए तो आए कहाँ से | समस्या वास्तव में बहुत जटिल है | अब भी पानी को बर्बाद करने वाले लोग नहीं चेत रहे हैं क्योंकि शायद यह परेशानी उनकी नहीं है | शहर की स्थिति यह है की सड़क पर भरा हुआ पानी तो आपको कभी भी मिल सकता है लेकिन घर की बाल्टी में पानी है या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है | कभी कभी बाहर मन होता है की कुछ खा लिया जाए लेकिन पानी को याद करके प्लान कैंसिल करना पड़ता है | अगर दस रुपये का समोसा खाते हैं तो बीस रुपये का पानी भी खरीदना पड़ता है | हमसे तो यह नहीं हो पाएगा | अगर महंगाई की बात करें तो सभी सब्जियों की बात करने लगते हैं ,बिजली की बात करने लगते हैं लेकिन सबसे महंगा तो पानी ही है जिसकी बात इतनी आसानी से लोग नहीं करते हैं |

शहरों में अच्छा पानी मिलना आसान नहीं है | हैरान करने वाली बात तो यह है की इतनी सारी परेशानियों के बाद भी न तो लोग इस परेशानी से निपटने की कोशिश कर रहे हैं और न ही सरकार | खैर हम अपने स्तर पर जो कर सकते हैं वो तो करना ही चाहिए | आगे आगे देखते हैं होता है क्या ...