गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

शहरों में पानी की हाय तौबा

हवा के बाद पानी मनुष्य की सबसे बड़े आवश्यकता है | वर्तमान की बात करें तो लोगों को पानी जुटाने के लिए नाको चने चबाने पड़ रहे हैं | ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो फिर भी ठीक ठाक है लेकिन शहरों में पीने का पानी मिलना बहुत मुश्किल हो गया है | पानी के लिए भी अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है | लोग बिसलेरी की बोतल से काम चलाते हैं या फिर घर में RO लगाना पड़ता है | टी वी पर वाटर प्योरीफायर के तरह तरह के विज्ञापन आते हैं | किसी की कमाई कम हो या ज्यादा लेकिन अपनी महीने के खर्च से कटौती करके वह RO खरीदने और फिर बिजली का बिल चुकाने को मजबूर है | अब अगर हम उन लोगों की बात करें जो पानी खरीदने में सक्षम नहीं हैं तो उनके हिस्से में तरह तरह की बीमारियाँ आती हैं | सरकार की स्थिति यह है की उसने अन्नपूर्णा योजना या फूड डिस्ट्रिब्यूशन तो शुरू कर दिया लेकिन पानी की ओर अभी भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है | सप्लाई से मिलने वाले पानी पर आए दिन सवाल उठते रहते हैं लेकिन इसका जवाब कोई देने को तैयार नहीं होता है | आए दिन सप्लाई का पानी बदबूदार आता है शिकायत करने पर सीवर टूटने का बहाना बता दिया जाता है | समझ में नहीं आता की ये पाइप लाइंस लोहे की बिछाई गई हैं या कागज की जो आए दिन फट जाती है | अब गर्मियाँ शुरू हो रही है | अब पानी के लिए त्राहि त्राहि मचने वाली है | समय पर पानी नहीं मिलेगा , और अगर मिलेगा भी तो उसकी क्वालिटी पीने लायक तो नहीं होगी | दिल्ली तो ऐसा शहर है जहां हैंड पंप भी नहीं लगाया जा सकता है | जिनके घरों में पानी का कनेक्शन नहीं है उन्हे तो केवल पानी के टैंकर का ही सहारा होता है | पानी का टैंकर आयेगा या नहीं इसका कोई सहारा नहीं होता है | गर्मियों में भी नहाने की नौबत नहीं आती है क्योंकि पानी ही नहीं उपलब्ध होता है |अब अगर यह परिस्थिति अरब देशों की हो तो बात समझ में आती है लेकिन भारत जैसा देश जहां कहा जाता है की प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है  यहाँ भी लोग ऐसी परेशानी से जूझ रहे हैं | आजकल जब हम किसी धार्मिक या ऐतिहासिक टी वी सीरियल में देखते हैं की कोई राजा अपने घोड़े से जा रहा है और रास्ते में उसे प्यास लगी | वह एक सरोवर के पास जाता है और सरोवर का पानी पीकर अपनी प्यास बुझा लेता है तो हमें रोना आता है | आजकल तो यह स्थिति हो गई है की यमुना के पुल से गुजरते समय नाक में रुमाल लगानी पड़ती है | ऐसा पानी पीकर कोई भी आत्महत्या कर सकता है |  अब तो लगता है चुल्लू भर पानी में डूब मरो की कहावत चुल्लू भर पानी पी मरो में परिवर्तित हो जाएगी | ज़मीन के अंदर पानी है नहीं और नदियों का पानी इतना दूषित हो गया है तो आखिर पीने का पानी आए तो आए कहाँ से | समस्या वास्तव में बहुत जटिल है | अब भी पानी को बर्बाद करने वाले लोग नहीं चेत रहे हैं क्योंकि शायद यह परेशानी उनकी नहीं है | शहर की स्थिति यह है की सड़क पर भरा हुआ पानी तो आपको कभी भी मिल सकता है लेकिन घर की बाल्टी में पानी है या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है | कभी कभी बाहर मन होता है की कुछ खा लिया जाए लेकिन पानी को याद करके प्लान कैंसिल करना पड़ता है | अगर दस रुपये का समोसा खाते हैं तो बीस रुपये का पानी भी खरीदना पड़ता है | हमसे तो यह नहीं हो पाएगा | अगर महंगाई की बात करें तो सभी सब्जियों की बात करने लगते हैं ,बिजली की बात करने लगते हैं लेकिन सबसे महंगा तो पानी ही है जिसकी बात इतनी आसानी से लोग नहीं करते हैं |

शहरों में अच्छा पानी मिलना आसान नहीं है | हैरान करने वाली बात तो यह है की इतनी सारी परेशानियों के बाद भी न तो लोग इस परेशानी से निपटने की कोशिश कर रहे हैं और न ही सरकार | खैर हम अपने स्तर पर जो कर सकते हैं वो तो करना ही चाहिए | आगे आगे देखते हैं होता है क्या ...

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