शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

भूमिगत जल

                                                                                          भूमिगत जल

धरती हमारे लिए सबसे बड़ी सन्दूक है जिसमें तरह तरह के खजाने भरे पड़े हैं | धातु और पेट्रोलियम  के साथ साथ पानी का भंडार भी धरती अपने अंदर सँजोकर रखती है | जरूर ईश्वर ने हमारे ही लिए इतनी व्यवस्था की होगी लेकिन हमारी इच्छाएँ असीमित हैं | हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू कर देते हैं | हम भूल जाते हैं कि हर चीज की एक सीमा होती है उसके बाद वह खत्म हो जाती है | अगर पानी की बात करें तो पानी भी असीमित नहीं है |
यूं तो धरती का लगभग सत्तर प्रतिशत भाग पानी से ढका है लेकिन पीने का पानी सीमित है | सागरों का पानी पीने योग्य नहीं होता है | भूमिगत जल को ही पीने के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त माना गया है | शहरों मेन तो भूमिगत जल निकालने पर प्रतिबंध है इसके बावजूद लो बाज़ नहीं आ रहे हैं | लोगों ने चोरी से घर के अंदर बोर पंप लगवा रखे हैं | आजकल शहरों मे सबसे ज्यादा मौज प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर की है | भूमिगत जल का शोषण करने मेन भी ये पीछे नहीं रहते हैं | पुराने मकानों को तोड़कर नए फ्लैट्स खूब बन रहे हैं | काम शुरू होने से पहले ही बिल्डर चोरी से बोरिंग करवा देता है और सालों तक उससे पानी निकालता रहता है जो पूरी तरह से अवैध है | प्रशासन को इस बात की जानकारी होती है लेकिन इस  दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है | इसी तरह उद्योग भी पीछे नहीं रहते हैं | भूमिगत जल को निकालकर उसे दूषित करके नदियों में छोडना इन्हे अच्छी तरह आता है लेकिन पानी को साफ करने के नाम से दूर भागते हैं | ऐसा लगता है हम लोग हर तरफ अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने में लगे हैं | इस मामले में तो गाँव भी कहीं पीछे नहीं हैं | धरती का पानी निकालकर खूब बर्बाद किया जा रहा है | खेतों की सिचाई का ढंग सही न होने की वजह से पानी बर्बाद होता है | नौबत यह आ गई है कि छोटी बोरिंग से अब पानी भी नहीं निकलता है | अब समरसिबल लगाना पड़ता है | भूमिगत जल का स्तर दिनों दिन गिर रहा है | कारण है कि तालाब कम हो रहे हैं | वर्षा का जल संरक्षित नहीं किया जा रहा है | नदियों में भी पानी की मात्रा बहुत कम होती है | उत्तर प्रदेश में सई नाम की एक नदी है जिसका जिक्र रामचरित मानस में भी किया गया है, यह एक बरहमासी नदी हुआ करती थी लेकिन आजकल मई में ही यह सूखकर बीहड़ का रूप ले लेती है | ऐसी और भी अनेक नदियां हैं जो मौसमी हो गई हैं | नदियों के सूखने से आसपास के के क्षेत्र से हरियाली भी गायब हो जाती है | किसानों की अपनी समस्याएँ अलग हैं | अब बरसात के जल से तो खेती संभव नहीं है क्योंकि समय पर बरसात ही नहीं होती है | ऐसे में भूमिगत जल का ही शोषण करना पड़ता है | पिछले कुछ वर्षो में सरकार ने मानरेगा के माध्यम से गांवों में तालाब खुदवाए हैं लेकिन यह काम भी गंभीरता से नहीं किया गया है | किसी भी तालाब तक पानी पाहुचने का रास्ता ही नहीं बनाया गया है | कुल मिलाकर स्थिति जस की तास बनी हुई है | वनों की कटाई से भी भूमिगत जलस्तर में गिरावट आ रही है | यह छोटी मोटी समस्या नहीं है | अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही तो वो दिन दूर नहीं है कि गाँव में भी पानी खरीदकर पीना पड़ेगा |



भूमिगत जल का स्तर बढ़ाने का तरीका यही है कि वनों की कटाई पर रोक लगाई जाए ,वृक्षारोपण किया जाये और वर्षा के जल का संरक्षण किया जाये |  यह काम किसी एक के प्रयास से नहीं संभव है अपितु सबको मिलकर प्रयास करना होगा | हमें इस समस्या की ओर आँख खोलकर देखना होगा | अपने कर्तव्य को समझकर जल का संरक्षण करना बहुत आवश्यक है |

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