शनिवार, 4 अप्रैल 2015

बेमौसम बारिश

                            बेमौसम बारिश

 बारिश का नाम सुनते ही हमें रिमझिम-रिमझिम बरसती बूंदों की याद आ जाती है | बागों की हरियाली याद आ जाती है | वर्षा ऋतु में बरसात सबको खुश कर देती है लेकिन यही बारिश जब बिना मौसम के होने लगे तो बहुत सारी दिक्कतें पैदा हो जाती हैं | आजकल यह आम बात हो गयी है | जब आवश्यकता होती है तब बारिश का नामोनिशान नहीं दिखाई देता, और जब आवश्यकता नहीं होती है तो झमाझम बारिश होती है | यह ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव का नतीजा है |
कल भी रात में दिल्ली समेत आसपास के इलाकों में झमाझम बारिश हुई | इस बारिश ने अप्रैल में ठंडी को फिर वापस बुला लिया | घर से निकलते ही सड़क पर भरे पानी से मुलाक़ात हो गयी | बारिश होते ही सड़क पर ट्रैफिक जाम हो जाता है | ऐसी बारिश किसी भी मायने में हमें खुश नहीं कर सकती | जहां देखो वहीं पानी भरा है और पानी में तैरती पन्नियाँ और भी चार चाँद लगा देती हैं | सड़क पर पैदल चलना मुश्किल हो जाता है | सोचना पड़ता है की काश हमारे पास मोटरसाइकल की जगह पर एक नाव होती तो आज आसानी से आना जाना हो पाता |
अगर गाँवों की बात करें तो अब रबी की फसल पककर तैयार हो गयी है | अब फसल को धूप की आवश्यकता है न कि बारिश की | इस बारिश ने किसानों की परेशानी भी बढ़ा दी है | जब बारिश की आवश्यकता होती है तब तो सूखा पड़ जाता है और जब नहीं होती है तब बाढ़ आ जाती है | बारिश से सब्जियों का भी नुकसान हुआ है | अब सब्जियों के दाम भी आसमान चढ़ जायेंगे और परेशान होगा ,आम आदमी | ऐसी बारिश संकेत करती है की बरसात के मौसम में हमें पानी की बूँद के लिए तरसना पडेगा | ‘ बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय ‘ , जब हमने अपने पर्यावरण को इतना नुकसान पहुचाया है तो यह सब तो भुगतना ही पडेगा | हिमालयी क्षेत्रों में भी आए दिन बाढ़ का आलम नज़र आ जाता है | कश्मीर में साल के भीतर ही दो बार भयंकर बाढ़ का सामना लोगों को करना पडा | पहाडी इलाकों में भू स्खलन की समस्या भी बढ़ रही है | जो पानी हमारे लिए जीवन देने वाला है वही प्राणघाती भी होता जा रहा है | उत्तर प्रदेश के एक किसान ने बताया की उसकी गेंहू की फसल का उत्पादन बारिश के चलते आधा हो गया है और फसल की लागत भी निकलनी मुश्किल हो गयी है |

हमारी जिम्मेदारी है की हम पर्यावरण का ध्यान रखें | प्रदूषण को नियंत्रित करें और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें | विज्ञान हमें पर्यावरण की इन समस्याओं से बचाने में सक्षम नहीं है | प्रकृति से छेड़छाड़ हमें विनाश की और ले जा सकती है और जो जल हमारी रक्षा करता है वही महाप्रलय बन कर हमें समाप्त भी कर सकता है |

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