सोमवार, 27 अप्रैल 2015

नीचे से भूकम्प ऊपर से पानी

earthquake के लिए चित्र परिणामपिछले दो दिनों से लगातार नेपाल और भारत के अनेक क्षेत्रों में भूकम्प के झटके महसूस किये जा रहे हैं । हम तो केवल महसूस ही कर रहे हैं लेकिन नेपाल के बहुत सारे लोग जो इसे झेल रहे हैं भगवान उनकी रक्षा करें और इस ज़लज़ले में समा गए लोगों के परिजनों को सहन शक्ति दें । भूकम्प से घबराये लोग दिन रात घर के बाहर बिताने को मजबूर हैं और ऊपर से ये बारिश उन्हें बाहर भी सुकून से नहीं बैठने दे रही है । सच ही है की मुसीबतें जब आती हैं तो छप्पड़ फाड़ के आती हैं । ऐसी बारिश भला किसी को कैसे रास आ सकती है । मेरे एक परम मित्र जो हमारे ही साथ पढ़ते हैं अभी हाल में ही अपने घर नेपाल गए थे । मुझे तो उनकी चिंता भी बहुत सता  रही थी लेकिन सुनकर अच्छा लगा किन उन्हें किसी भी तरह का नुकसांन  नहीं पहुंचा है । हम अक्सर अपने परिजनों को सलामत जान के थोड़ा खुश तो हो जाते हैं लेकिन इस भूकम्प में मारे गए हज़ारों लोगों की आह दिल तक उतर  जाती है । हे इश्वर अब और उन लोगों की और परिक्षा न ले  । उनका घर उन्हें वापस दिला दे । हम तुम्हारे अस्तित्व को स्वीकार करते हैं । हम जान गए हैं कि ये दुनिया तुम्हारी मुट्ठी में है । ये घर हमने बनाया तो है लेकिन बिना तुम्हारी मर्जी के , हम इसमें रह नहीं सकते । हम आपके बालक हैं । हमें घमंड हो गया था अपने विज्ञान पर लेकिन अब मुझे पता चल गया है की हमारी सीमा कहाँ तक है । अभी तक हम भूकम्प की भविष्यवाणी करने में भी सक्षम नहीं है । 
हे इश्वर सब की रक्षा करो । 


सर्वे   भवन्तु   सुखिनः , सर्वे सन्तु   निरामयाः । 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत् ॥ 

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

पानी के बताशे (गोलगप्पे )

golgappe eating के लिए चित्र परिणामपानी के बताशे यानी गोलगप्पे का नाम सुनते ही हमारे मुह में पानी आ जाता है । यही एक ऐसा व्यंजन है जिसमें पानी भर के खाया जाता है ।  गोलगप्पे सभी को अच्छे लगते हैं । देखिये साहब हमारे लखनऊ में तो इसे पानी के बताशे कहते  हैं तो हम तो यही बोलेंगे । ये पानी का बताशा देखने में गोल मटोल जितना अच्छा लगता है उससे भी कहीं ज्यादा अच्छा इसे खाने वाले का मुंह लगता है । किसी के गाल कितने भी पिचके हुए हों लेकिन गोलगप्पे खाते समय ,  फूल ही जाते हैं । इसको हम बहुत सारे नामों से जानते हैं । लखनऊ में ' पानी के बताशे' , मेरठ में ' पटाखे ' , पंजाब में 'पानी पूरी' , दिल्ली में ' गोलगप्पे' , फैज़ाबाद  में  ' फुलकी' और ना जाने क्या क्या  । अच्छा जगह के हिसाब से इसका स्वाद भी थोड़ा बहुत बदल जाता है । गोलगप्पे का तो नहीं लेकिन पानी का स्वाद बदल जाता है । लखनऊ में शाम को गोलगप्पे खाने का अलग ही मजा है । 10 रुपये के 10 बताशे मिल जाते हैं तो स्वाद भी कुछ ज्यादा आता है । दिल्ली में आते ही ये गोलगप्पे सबसे पहले महंगाई का एहसास दिला देते हैं । 10 रुपये के केवल 4 मिलते  हैं वह भी सड़क किनारे ठेले पर अग्रवाल के गोलगप्पे तो गरीबों के लिए बनते ही नहीं हैं । बताओ पानी के बताशे में भी भेदभाव । अच्छा लखनऊ में १० गोलगप्पे खाने के बाद हम एक शानदार दही चटनी से लबालब बताशा और खा लेते हैं लेकिन दिल्ली में तो पानी पी के ही संतोष करना पड़ता है । पिछले साल तमिलनाडु के एक गाँव में जाना हुआ था । वहां भी मुझे पानी के बताशे दिख गए मैं बड़े शौक से दुकान पर जा पहुंचा और अपने दोस्तों के साथ 40 बताशों का आर्डर दे दिया । जब प्लेट सामने आई तो ना बताशे थे न पानी । असल में बताशे फोड़ कर प्लेट में लाये गए थे  । बस किसी तरह खा लिया और आज भी सोचता रहता हूँ की जब फोड़कर ही देने थे तो गोलगप्पे बनाये ही क्यूँ गए थे । लखनऊ में बताशे में मटर भरकर खिलाते हैं लेकिन दिल्ली में आलू भरकर खिला देते हैं । हे भगवान इतने चालाक लोग , गोलगप्पे को भी नहीं बक्शा । इंसानों का क्या होगा ? बेचारा गोलगप्पा आलू खा खा के  परेशान हो गया होगा । अच्छा एक बात और ,पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को गोलगप्पे  पसंद होते हैं । नई नई शादी के बाद अगर किसी ने अपनी पत्नी के साथ सड़क किनारे ठेले पर गोलगप्पे न खाए तो आधा मजा तो यूं ही खराब हो गया समझो । घूंघट वाली नई नवेली दुल्हनों को पानी के बताशे खाने में थोड़ी परेशानी होती है लेकिन दूसरी और आराम भी रहता है क्योंकि उनके फूले हुए गाल कोई देख नहीं पाता  है ।  और पति गिन भी नहीं पाता  है की मैडम कितने गोलगप्पे खा गयी । जिसका मुंह जितना बड़ा होता है गोलगप्पे खाना उतना हीआसान होता है । ज्यादा बोलने वाले लोग ज्यादा गोलगप्पे खातेहैं क्योंकि उनका मुंह अपेक्षाकृत बड़ा हो जाता है । अच्छा इस मामले में मैं महिलाओं का नाम बिल्कुल नहीं लूंगा । कोशिश करनी चाहिए की गोलगप्पे खाने जाए तो अकेले न जाए क्योंकि अगर हम दुकान पर अकेले पड़  जाते हैं तो गोलगप्पे वाला बड़ी बेरहमी से खिलाता है । सांस भी नहीं लेने देता और दूसरा गोलगप्पा रख देता है । मैं  तीखा कम खाता हूँ । ऐसे में मैं मुंह से गोलगप्पे के साथ जितना पानी पीता हूँ उतना मेरी आँखों से बाहर आ जाता है । खैर यह ऑसम व्यंजन है । सदाबहार भी है । पानी का बताशा हमेशा लोकप्रिय रहेगा , चाहे जितने नए व्यंजन बाजार में आ जाएँ । इतना लिखने के बाद अब मैं बिना गोलगप्पे  खाए नहीं रह सकता । मैं जा रहा हूँ आपका मन हो तो आप भी चल सकते हैं । 

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

फिल्मी गीतों में पानी

                 फिल्मी गीतों में पानी


 पानी का जितना महत्व हमारे जीवन में है फिल्मी गीतों में भी उतना ही रहा है | भारतीय सिनेमा में अक्सर ऐसे गीत गाये गए जिसमें पानी का जिक्र किया गया है | फिल्म लगान का काले मेघा , काले मेघा पानी तो बरसाओ किसे नहीं याद है |  इसी तरह गुरू फिल्म का , बरसो रे मेघा गाना भी लोगों की जुबान पर चढ़ गया | महबूबा फिल्म में गीत मेरे नैना सावन भादों किशोर कुमार की आवाज़ में फिल्माया गया जो सदाबहार गीतों में शुमार है |     मोहरा फिल्म में गाया गया गीत टिप – टिप बरसा पानी “ रोमांटिक गीतों के रूप में याद किया जाता है | पानी रे पानी तेरा रंग कैसा , शोर फिल्म का यह गीत पानी की क्वालिटी बताता है की पानी का अपना कोई रंग नहीं होता है लेकिन जिसमें भी मिला दिया जाये उसी के जैसा रंग हो जाता है | शोर फिल्म का एक और गाना है एक प्यार का नगमा है , मौजों की रवानी है इसके एक अंतरे में में कहा गया है आँखों का समंदर है , आशाओं का पानी है |’ माचिस फिल्म का गीत पानी –पानी रे स्वर  साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने गाया  है और अपने मधुर स्वर से पानी को और भी मीठा कर दिया है  | संजीव कुमार पर फिल्माया गया गीत ठंडे – ठंडे पानी से नहाना चाहिए किसे नहीं आता होगा | सर्दियों में यह गाना अनायास ही हमारे होठों पर आ जाता है | एक गीत जो 70 के दशक की याद दिलाता है ,जिसके बोल कानों में घुलते ही पानी की यात्रा को बताने लगते हैं  और साथ में जिज्ञासा भी पैदा करता है   ताल मिले नदी के जल से , नदी मिले सागर से , सागर मिले कौन से जल से |   पानी की सबसे ज्यादा जरूरत किसान को होती है और अगर बेमौसम बारिश होती है तो उसका नुक्सान भी किसान को ही उठाना पड़ता है | श्याम बेनेगल की फिल्म 'वेल डन अब्बा' भी पानी की समस्या को दिखाने वाली एक अच्छी फिल्म थी | इसमें 'पानी को तरसते' गीत को को भावनात्मक रूप से दिखाया गया | गीतों के अलावा गज़लों में भी पाने की अहमियत बताई गई है | खासकर बचपन में पानी और बारिश बहुत अच्छी लगती है | जगजीत सिंह की गजल ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो , भले छीन लो मुझसे मेरे जवानी , मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन , वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी |’

कवियों के कल्पना में पानी का स्थान हमेशा से रहा है इसीलिए शायद फिल्मी गीतों में भी पानी को शामिल किया गया है | बादल , सागर , बारिश और पानी से संबन्धित सैकड़ों गीत हिन्दी फिल्मों में मिल जाएँगे |  कभी पानी को देखकर गीत गाये गए तो कभी पानी की कमी पर गीत गाये गए | वास्तव में पानी अगर समय पर बरसता है तो यह खुशी का परिचायक है , पानी बरसता देख कर जंगल में मोर भी खुशी से नाचने लगते हैं, इसीलिए बहुत पुराने समय से ही पानी पर गीत बनाए और गाये जा रहे हैं |

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

कितने रूप पानी के

                                                           कितने रूप पानी के


पानी हमेशा पानी जैसा नहीं दिखता है | पानी का एक बहुत अच्छा गुण होता है की पानी बहुत आसानी से कहीं भी घुल मिल जाता है | ये ऐसा गुण है जो सभी को सीखना चाहिए | गर्मियाँ आते ही हम तरह तरह के पेय पदार्थों का सेवन करने लगते हैं | सड़क के किनारे जगह-जगह पर सिकंजी के ठेले मिल जाते है | हम बड़े चाव से छाछ , सरबत  और जलजीरा पीते हैं | हमारे शरीर के लिए पानी बहुत जरूरी होता है | अगर पानी की कमी हो जाती है तो हमे देने के लेने पड़ जाते हैं | इसीलिए हमें पर्याप्त मात्रा में पानी पीते रहना चाहिए | आजकल लोग पारम्परिक पेय पदार्थों का उपयोग थोड़ा कम करने लगे हैं क्योंकि मार्केट में बहुत सारे colddrinks प्रचलन में हैं | कोकाकोला , पेप्सी जैसे अनेक ब्रांड तरह तरह के शीतल पेय बनाते हैं और लोग धड़ल्ले से उनका इस्तेमाल करते हैं |  हम भूल जाते हैं की हमारे स्वास्थ्य के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है | इन शीतल पेयों में सोडा और एसिड तक का इस्तेमाल होता है | हड्डियों के लिए भी colddrink  हानिकारक होती है | कोडड्रिंक मेन इतना कास्टिक होता है की इससे टॉइलेट भी साफ किया जा सकता है | अब आप सोच सकते हैं की यह हमारे शरीर को कितना नुकसान पहुंचाती होगी |  आज हमारे जीवन में कोल्डड्रिंक फैशन की तरह शामिल हो गई है | कोई भी छोटी मोटी पार्टी हो या कोई बड़ा त्योहार कोल्डड्रिंक जरूर मंगाई जाती है | हम तो यह भी नहीं देखते की यह कोल्डड्रिंक कब पैक की गई थी | हम वही हैं जो दो दिन का भरा हुआ पानी भी नहीं पीते लेकिन कोल्डड्रिंक बड़ी शौक से पीते हैं और मॉडर्न बन जाते हैं | कोल्डड्रिंक की वजह से ही हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक लस्सी और गन्ने के रस जैसे पेय हमसे दूर होते जा रहे हैं | कोडड्रिंक कभी प्यास नहीं बुझाती है बल्कि डिहाइड्रेशन कर देती है जिससे पानी की कमी हो जाती है और हम बीमार हो जाते हैं | प्यास बुझाने के लिए तो पाने से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है | कई लोगों के घरों मेन तो  रेफ्रीजरेटर में हमेशा कोल्डड्रिंक राखी रहती है और नशे की तरह लोग इसका सेवन करते रहते हैं | अब तो लोग यह भी नहीं देखते की सर्दी का मौसम है या गर्मी का , बस कोल्डड्रिंक पीते रहते हैं | एक बोतल कोल्डड्रिंक केवल कुछ पैसों में तैयार हो जाती है लेकिन वही बोतल हमें ऊंची कीमतों में बेच दी जाती है और हम बड़ी शौक से खरीदकर पीते हैं | हम जो पैसे खर्च करते है उसका मैक्सिमम हिस्सा विदेश जाता है | ऐसे में हम क्यूँ ना देशी पेय का इस्तेमाल करें और अपना स्वास्थ्य भी बनाए रखें | कई बार तो ऐसे केस आ चुके हैं जिसमें कोल्डड्रिंक की बोतल में अवांछित चीजें पाई गई हैं , लेकिन हम आज भी इसे गंगाजल मान कर बड़े प्रेम से पीते रहते हैं | अगर हम खाना खाने के बाद कोल्डड्रिंक पी लेते हैं तो हमारे पाचन तंत्र को दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है | ऐसे में पेट से संबन्धित बहुत सारी बीमारियाँ भी हो जाती हैं | हमें कोशिश करनी चाहिए की कोल्डड्रिंक कम से कम पीना चाहिए और पानी ज्यादा से ज्यादा पीना चाहिए |

हम बहुत सौभाग्यशाली हैं की हमारे देश में खाने और पीने की बहुत सारी चीजें हैं | हमारे यहाँ तरह तरह के स्वादिष्ट और स्वास्थ्य वर्धक पेय मौजूद हैं और कम कीमतों पर आसानी में मिल भी जाते हैं तो हम क्यूँ कोल्डड्रिंक के आदी हो जाएँ | किसी भी चीज की बहुतायत अच्छी नहीं होती है | हमें अपनी कोल्डड्रिंक पीने की आदत पे भी थोड़ा कंट्रोल करना चाहिए | प्यास बुझाने के लिए सोच समझकर पेय का चुनाव करना चाहिए और आवश्यक मात्र में पानी जरूर पीना चाहिए जिससे गर्मियों में हम बीमारियों से दूर रह सकें |

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

पानी क्या-क्या कहता है

  •  पानी बचपन से ही हमारे बहुत करीब रहता है । ठंढ़ियों में नहाने से जितना डर लगता है बारिश में हमें भीगना उतना ही अच्छा लगता है । पानी की कीमत हमें बचपन से समझ आ गयी जब हमें थाली में पानी भरकर चन्दा मामा  सौप दिए जाते थे । कहा जाता है  ' कोस कोस पर पानी बदले , तीन कोस बार बानी ।' पानी को लेकर हम अनेक कहावते और  मुहावरे हम  सुनते आ रहे हैं ।  बात बात पर पानी का नाम हमारे कान में जरूर पड  जाता है । अगर हमारा कोई काम बनने वाला ही हो और तभी कोई परेशानी आ जाये और उमीदों पर पानी फिर जाए तब हम कहते हैं ' गई  भैंस पानी में   । वास्तव में इस कहावत का जन्म किसी चरवाहे के आस पास ही हुआ होगा क्योंकि भैंस अगर एक बार पानी में कूद जाती है तो निकालना उतना ही मुश्किल होता है जितना चुनाव हारने के बाद दोबारा चुनाव जीतना होता है । मेहनत  पर पानी फेर देना भी कुछ ऐसा ही मुहावरा है जो तब बोला जा सकता है जब पार्टी का एक व्यक्ति पार्टी में अपनी छवि सेक्युलर होने की बनाता है और पार्टी का दूसरा व्यक्ति विवादित बयान देकर उसकी मेहनत  पर पानी फेर देता है ।  अगर एक पार्टी दूसरी पार्टी को बुरी तरह हरा देती है तो हारने  वाली पार्टी के लिए कहा  है ' बेचारे पानी मांग गए ।' पानी का सम्बन्ध शर्म से भी है । कहा जाता है शर्म से पानी - पानी हो जाना ।, खैर अब जल्दी कोई शर्म से पानी पानी नहीं होता है इसलिए इस मुहावरे का प्रयोग काम हो गया है । अब तो शर्म हया बेच कर खा जाने का समय चल रहा है । किया भी क्या जा सकता है , महंगाई भी तो बहुत है । ककिसी के पास पैसे नहीं हैं तो की पैसा पानी की तरह बहा रहा है । पानी से किसी के वंश और परिवार की और भी संकेत किया जा सकता है । किसी कद कएही देख कर कहा जाता है की इसका तो पानी ही ऐसा है । अर्थात खून और पानी का भी करीबी रिश्ता है । दूध में पानी मिलाना आज न्यूज हो सकती है क्योंकि आम तौर पर आज पानी में दूध मिलाया जाता है । यहीं से एक कहावत का जन्म हुआ ' दूध का दूध और पानी का पानी करना । ' जैसे हम जब वोट देकर किसी को जिताते हैं तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो पाता  है । हम सभी साफ़ पानी पीना पसंद करते हैं लेकिन एक तरीका और भी है साफ़ पानी पी जाने का । किसी बात से साफ़ इंकार कर देने को भी साफ़ पानी पी जाना कहा जाता है । हम जब अपनी साधारण सी एक जैसी रोज चलने वाली ज़िंदगी से परेशान हो जाते हैं तो हवा पानी बदलते हैं | पानी का जितना महत्व हमारे जीवन में है उतना ही हमारे बोलचाल में भी है । इसलिए पानी की कीमत समझनी चाहिए और पानी को पानी की तरह नहीं बहाना चाहिए वरना एक दिन अपनी भी भैंस पानी में कूद सकती है । 

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

पानी की कहानी


मैं पानी हूँ | जब पृथ्वी पर जीवन नहीं था तब भी मैं था | पृथ्वी पर जीवन के शुरुआत करने में मेरे अहम भूमिका रही है | सबसे पहले मेरे गोद में ही जीवन का जन्म हुआ | धरती से लेकर आकाश तक मैं विचरण करता हूँ | समय और परिस्थिति के अनुसार ढल जाना मुझसे अच्छा कौन जानता होगा | मैं कभी तरल रूप में नदियों में कल-कल कर बहता हूँ तो कभी सागर में हवा के साथ हिलोरे लेता हूँ  | कभी वाष्प बनकर धरती अंबर की  करता हूँ ,और कभी बर्फ बनकर पहाड़ों पर ठहर जाता हूँ और विश्राम करता हूँ | न तो मैं जन्मा हूँ और न ही कभी मेरा अंत होता है | मानुष्य भी मेरी ही संतान है क्योंकि उसके पालन पोषण की ज़िम्मेदारी मेरे कंधों पर है | ईश्वर ने मुझे बनाते समय बताया था की तुम्हारा कर्तव्य मनुष्यों की प्यास बुझाना है , और साथ में आगाह भी किया था की मानुषी की प्यास असीम है कहीं ऐसा न हो की स्वार्थवश वह तुम पर हावी हो जाये | मैं सब कुछ जानता हूँ लेकिन मैं अपनी संतानों से बहुत प्रेम करता हूँ |
मेरे अस्तित्व के बिना जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है | अगर मैं न होता तो न तो सागर होता ,न नदियां होती ,न हरे भरे वन होते , और न ही जीव जन्तु होते | जब तक मैं धरती पर नहीं आया था तब तक धरती भी अकेलेपन की आग में तप रही थी | धरती को शीतल करने की ज़िम्मेदारी और अनिश्चितकाल तक साथ निभाने की ज़िम्मेदारी भी ईश्वर ने मुझे ही दी | मैंने कभी अपनी संतानों में भेद नहीं किया | मैं सबकी प्यास बुझाना चाहता हूँ | आज तो मेरे संतानों ने मेरी जरूरत और उम्र दोनों का लिहाज करना छोड़ दिया है | धरती से निकालने के बाद , बादलों से बरसने के बाद मेरी भी इच्छा होती है की मैं नदियों में इठलाते हुये कल-कल कर बहूँ ,अपने संतानों के हाल चाल लेते हुये ,उनकी प्यास बुझाते हुये सागर तक पाहुचू , कहीं सरोवर में विश्राम करूँ और अपनी प्यारी सहेली धरती में समा जाऊं | आज मेरी इच्छाए धारी की धरी रह जाती हैं क्योंकि मानुष्य मुझे जहां चाहता है वहीं रोक लेता है | जैसा चाहता है वैसा काम लेता है और मेरी दुर्दशा करके बाहर का रास्ता दिखा देता है | मुझमे सहन शक्ति की कमी नहीं है | इतनी दुर्दशा के बावजूद मैंने कभी मानवता के विपरीत विचार नहीं किया और लगातार परोपकार में लगा हूँ | आज मनुष्य पहले मुझे कुरूप कर देता है और उसके बाद मुझे देख कर मुंह बनाता है | मैं सब कुछ सह लेता हूँ | कभी कभी अपनी संतानों को समझाने के लिए मैं कठोर कदम उठाता हूँ लेकिन यह मेरी मजबूरी होती है | कभी कभी मैं बादलों से फट कर बरस जाता हूँ | कभी नदियों में बाढ़ ला कर सब कुछ बहा ले जाता हूँ | कभी फसलों को तहस नहस कर देता हूँ तो कभी सूखा ला देता हूँ , लेकिन नासमझ मनुष्य मुझे समझ नहीं पाता है और अपनी धुन में मस्त है | मैं डरता हूँ की कहीं मेरी सहनशक्ति जवाब न दे जाये और किसी दिन मैं महाप्रलय में बादल जाऊं | अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब में धरती के सभी स्थानों को छोडकर या तो सागर में सिमट जाऊंगा या फिर पूरी धरती को अपनी आगोश में लेकर जीवन का अंत कर दूंगा | मैं आज भी चाहता हूँ कि मेरी संतान मेरी भावनाओं को समझ जाये और अपनी स्वयं की रक्षा कर ले | हे ईश्वर मेरी संतानों को सदबुद्धि दे |

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

पानी की बरबादी



                                             पानी की बरबादी



                             रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून |
                             पानी गये न ऊबरै , मोती मानुष , चून  ||

 पानी अमूल्य है और हमारे पास पीने के पानी की निश्चित मात्रा ही उप्लब्ध है | वैसे तो पानी की कोई कमी नहीं है लेकिन हमारे उपयोग लायक पानी बहुत कम है | पानी का मूल्य वही समझते हैं जिन्हे आसानी से नहीं मिलता है | हमारे देश में राजस्थान में बहुत सारे ऐसे गांव हैं जहां पीने का पानी लेने के लिये मीलों चलना पड्ता है | उन्हे पानी की असली कीमत पता होती है | लेकिन हम जहां रहते हैं वहां आसानी से पानी मिल जाता है इसीलिये हम बिना सोचे समझे पानी को बरबाद किया करते हैं |
हम अगर दैनिक जीवन की बात करें तो पता नहीं कितना पानी व्यर्थ में फ़ेंक देते हैं | हमें भी पानी की कीमत का अंदाज़ा उसी दिन लगता है जिस दिन सप्लाई का पानी नहीं आता है और टंकी में पानी खतम हो जाता है | कुछ लोग अपना घर इतना साफ़ करते हैं कि उन्हे पता ही नहीं लगता कि हमारा पानी भी बरबाद हो रहा है | हम अपने पड़ोस में देखते हैं कि लोग अपना घर धोने के बाद सड़क भी धोने लगते हैं जिससे धूल उड़कर उनके घर तक न जाये | अक्सर लोगों की आदत होती है कि वो पानी का नल खुला छोड़ देते हैं और पानी फ़ालतू में बहता रहता है | कई लोग तो सुबह ब्रश करते समय यह भूल जाते हैं कि टोटी से पानी बह रहा है | इन्ही छोटी – छोटी आदतों से बहुत सारा पानी बरबाद हो जाता है | कारखानों मे भी पानी की बहुत बरबादी होती है | अगर कारखानों से निकलने वाले गंदे पानी को शोधित करके दोबारा उपयोग में लाया जाए तो बहुत पानी बचाया जा सकता है | सार्वजनिक स्थानों जैसे रेलवे स्टेशन , बस स्टाप ,सिनेमा हाल में भी लोग पानी का नल अक्सर खुला छोड़ देते हैं | हमें ध्यान रखना चाहिये कि अगर कोई ऐसा करता भी है तो हम तत्काल नल बंद कर दें | बहुत सारे घरों में सफ़ाई करने के लिये अब झाड़ू की जगह पर पानी की धार का प्रयोग किया जाता है जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है | इसी तरह की बहुत सारी आदतों की वजह से हम बहुत सारा पानी बरबाद कर देते है |
हमें ध्यान रखना चाहिये कि पानी को कभी फ़ेकना न पड़े | पानी को स्टोर करके रखना चाहिये और आवश्यकता होने पर उपयोग में लाना चाहिए | कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन पीने के पानी के भी लाले पड़ जाएं | हम अगर अपने दैनिक जीवन में भी पानी को लेकर थोड़ा गम्भीर हो जायें तो पानी की बरबादी को रोका जा सकता है |